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अर्कतूल के समान अति सुकोमल स्पर्शवाले पलंग पर अर्धनिद्रित अवस्था में आधी रात के समय त्रिशला क्षत्रियाणी गज, वृषभ आदि चौदह महास्वप्न देखकर जाग उठती है । यद्यपि वीरप्रभु की माताने पहले स्वम में सिंह देखा है और ऋषभदेव की माताने प्रथम बैल देखा है तथापि बहुत से जिनेश्वरों की माता जिस क्रम से | स्वम देखती हैं वही क्रम रक्खा है।
चौदह स्वप्नों का वर्णन अब प्रथम स्वम में त्रिशला माताने गज देखा । वह चार दांतवाला, तेजस्वी, बलवान, वृष्टि के बाद सफेद | हुए बादल, मुक्ताहार, क्षीर समुद्र, चंद्र किरणों, जल बिन्दुओ, चाँदी के पर्वत वैताढ्य के समान उज्ज्वल एवं जिसके गंडस्थल से मद झरने के कारण सुगंध के वश होकर जहाँ भ्रमर गुनगुनाहट कर रहे थे तथा इंद्र के हाथी समान शास्त्रोक्त देह प्रमाण और जलपूर्ण मेघ के समान गर्जना करते हुए सर्व लक्षण समूह से वह अतिमनोहर हाथी था।१।
इसके बाद त्रिशला माता उज्वल कमल पत्र के समूह से भी अधिक रूपकान्तिवाले, जो अपने विसत्त कान्तिसमूह से दश ही दिशाओं को सुशोभित करता था, फूले हुए स्कंध भाग से स्वयं उल्लसित कान्तिद्वारा अति सुन्दर, सूक्ष्म, शुद्ध और सुकोमल रोमवाले, सुगठित अंग, मांसल शरीर, प्रधान, पुष्ट अवयव, वर्तुलाकार सुन्दर चिकने और तीक्ष्ण सींग, समान प्रमाणवाले, सौम्याकृति, मंगल मुख, सुशोभित श्वेतवर्णीय बैल को
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