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सहकर दयाभाव के कारण सौ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर मर कर तूं यहाँ श्रेणिक राजा और धारणी रानी का पुत्र हुआ है । हे मेघकुमार ! उस समय पशु के भव में भी तूंने धर्म के लिए वैसा कष्ट सहन किया था तो अंब जगत के वन्दनीय मुनियों की चरणरज से तूं क्यों दुखित होता है ? ऐसा उपदेश दे कर प्रभुने उसे धर्म में स्थिर किया । अपना पूर्वभव का वृतान्त सुनते समय मेघकुमार को जातिस्मरण ज्ञान हो जाने से उसने केवल नेत्र वर्ज कर अपना सारा शरीर मुनियों की सेवा में समर्पण कर दिया । क्रम से निरतिचार चारित्र पालन कर मेघकुमार अन्त में महीने की संलेखना कर विजय नामक विमान में देव हुआ। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म कर वह मोक्ष पद को प्राप्त करेगा ।
महामहोपाध्याय श्रीकीर्तिविजयगणि के शिष्य उपाध्यायश्रीविनयविजय गणि की रची हुई कल्पसूत्र की सुबोधिका नामा टीका का यह हिन्दी भाषा में प्रथम व्याख्यान समाप्त हुआ ।
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