________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
LI
भी
व्याख्यान
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद।
॥२०॥
तूं वैताब्य पर्वतपर सुमेरुप्रभ नामक हाथी था। वह ६ दांतवाला श्वेतवर्णीय और एक हजार हथनियों का स्वामी था। एक बार दावानल से भयभीत हो भागते हुए को प्यास लगने से बहुत कीचड़वाला सरोवर देखने में आया। मार्ग न जानने से पानी पीने जाते हुए वह वहाँ दलदल में फँस गया । अब जल और थल दोनों से लाचार हो गया। फिर उसके पूर्वशत्रु हाथियोंने वहां आकर उस पर दाँतों के प्रहार किये। उनकी वेदना सात दिन तक सहकर एक सौ वीस वर्ष का आयु पूर्ण कर विन्ध्याचल पर फिर तूं लाल रंग का चार दाँतवाला और सातसौ हाथनियों का स्वामी हाथी हुआ। वहाँ पर भी एक बार दावानल लगा, उसे देख तुझे जातिसरण ज्ञान पैदा हुआ। पूर्वभव का स्मरण होने से दावानल से बचने के लिए तूंने एक योजन प्रमाणवाला एक मंडल बनाया। वर्षाकाल से पहले, मध्य में और वर्षा के अन्त में उस मंडल में जमे हुए घास तृण आदिको तूं उखाड कर फेंक देता था । एक दिन दावानल लगने पर भयभीत हो उस जंगल के तमाम प्राणी अपनी जान बचाने के लिए उस मंडल में आ बैठे । तूं भी बाहर से शीघ्र ही आ गया । शरीर में खुजली करने की इच्छा से तूंने | अपना पैर उठाया। उस वक्त दूसरी जगह पर भीड के कारण अत्यन्त तंग हुआ एक खरगोश उस जगह आराम से आ बैठा। खुजली कर पैर नीचे रखते समय तेरी नजर उस खरगोश पर पड गई। उस पर दया आने से तूं दो दिन तक पैर अधर किये खड़ा रहा। जब दावानल शांत हो गया और सब प्राणी अपने स्थान पर चले गये तब ना पैर नीचे रखते समय खून जमजाने के कारण तूं जमीन पर गिर पड़ा। फिर तीन दिन तक भूख प्यास की पीडा |
॥२०॥
For Private And Personal