SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir लिए हमने मौनावलंबन ही श्रेयस्कर समझा। संघने बड़े आश्चर्य से पूछा कि-हे ज्ञानी गुरुदेव ! ऐसा क्यों ? तब आचार्य महाराजने फरमाया कि-राजकुमार की सातवें दिन बिल्ली से मृत्यु होजायगी। राजा को यह बात मालूम हुई तो राजाने शहर में से तमाम बिल्लियां निकलवा दी तथापि सातवें दिन दूध पीते हुए बालक के मस्तक पर विल्ली के मुखाकारवाली अर्गला टूट पड़नेसे उसकी मृत्यु हो गई । इससे भद्रबाहुस्वामी के ज्ञान की प्रशंसा और वराहमिहिर की सर्वत्र निन्दा हुई । वराहमिहिर क्रोध से मरकर व्यन्तर देव* हुआ अतः उसने मरकी आदि से संघ में उपद्रव करना शुरु किया । भद्रबाहुस्वामीने उपसर्गहर स्तोत्र रचकर संघ का कल्याण किया । ऐसे श्री भद्रबाहु गुरु जयवन्ते रहें। ___ श्री स्थूलभद्रजी-माढर गोत्रीय स्थविर आर्य संभृतिविजय के गौतम गोत्रीय स्थविर आर्य स्थूलभद्र | | शिष्य थे। स्थूलभद्र का सम्बन्ध इस प्रकार है-पाटलीपुर में शकडाल मंत्री के पुत्र श्री स्थूलभद्र बारह वर्ष तक * शास्त्रकारों का ऐसा फरमान है कि " रज्जुगाह १ विषभक्खण २ जल ३ जलण ४ पवेस तन्ह ५ छुह ६ दुहिया । गिरिसिर पडणाओ मुभा ७ सुहभावा हुंति वंतरिया ॥१॥ ___ अर्थात्-कोई मनुष्य फांसा खाकर, विष भक्षण कर, जल में डूब कर, अग्नि में जल कर, क्षुधा और तृषा से पीडित होकर, पर्वत के शिखर से गिर कर मरे और यदि मरते समय उसको कुछ लेश मात्र भी शुभ भावना आजाय तो वो जीव मर कर यंतर जाति का देव होता है। ४ पटना. For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy