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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद । ॥ १३० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir निमित्त (जोतिष) की प्ररूपणा आदि से अपना गुजारा करना प्रारंभ किया। लोगों में कहने लगा कि मैंने जंगल में एक जगह शिला पर सिंह लग्न लिखा था । सोते समय मुझे याद आया कि मैंने उस लग्न को मिटाया नहीं । मैं उसी वक्त रात को ही वहां गया, परन्तु उस पर मैंने सिंह बेठा देखा । तथापि नीडर हो उसके नीचे हाथ डाल करके मैंने उस लग्न को मिटा दिया । इस से संतुष्ट हुआ सिंह लग्न का अधिपति सूर्य प्रत्यक्ष होकर मुझे अपने मंडल में ले गया और वहाँ सर्व ग्रहों का चार मुझे दिखलाया । एक दिन वराह मिहिरने एक मॉडला बना कर राजा से कहा कि इस माँडले के मध्य भागमें आकाशसे बावन पल प्रमाणवाला एक मच्छ पड़ेगा, परंतु भद्रबाहु स्वामिने कहा कि “ अर्ध पल प्रमाण वजन उसका मार्ग में ही सूख जायगा, इससे साढ़े एकावन पल प्रमाणवाला और मध्य भाग में न पड़कर वह एक किनारे पर पड़ेगा। घटना इसी प्रकार मिली। अपनी बात झूठी साबित होने से वराहमिहिर का मन बड़ा दुःखित हुआ । वह दूसरा अवसर देखने लगा । एक दिन राजा के घर पुत्ररत्न का जन्म हुआ । वराहमिहिरने उसका सौ वर्ष का आयु बतलाया और लोगों में यह बात फेलाई कि भद्रबाहु तो व्यवहार को भी नहीं जानते कि जो राजा को पुत्र की बधाई देने तक भी नहीं आये । जब श्रीसंघ के आगेवानोंने यह बात श्री भद्रबाहुस्वामी से अर्ज की तब उन्होंने फरमाया कि हमें पुत्र वधाई देने जाने में कोई हर्ज नहीं है परंतु सातवें दिन हमें पुनः शोक प्रगट करने जाना पड़ेगा इस For Private And Personal आठवां व्याख्यान. ॥ १३० ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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