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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी अनुवाद |
॥ १०८ ॥
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राजमती ही प्रशंसनीय है कि जिस का हाथ यह ऐसा दुलहा पकड़ेगा ! चंद्रानना मृगलोचना से बोलीयदि विज्ञान में निपुण विधाता भी ऐसी अद्भुत रूपराशिवाली मनोहर राजीमती को बना कर ऐसे उत्तम वर के साथ उसका मेल न मिलावे तो वह क्या प्रतिष्ठा प्राप्त करे ?
इधर बाजों का नाद सुन कर राजीमती भी माता के घर से निकल कर वहाँ पर आ पहुँची । सहेलियों के बीच में आकर राजीमती बोली-सखियो ! आडम्बर सहित आते हुए वरराजा को तुम अकेली ही देख रही हो, क्या मैं नहीं देख सकती ? यों कह कर बलपूर्वक उनके बीच में खड़ी हो रथारूढ नेमिकुमार को आते देख आश्चर्यपूर्वक विचारने लगी- क्या यह पाताल कुमार है ? या स्वयं कामदेव है ? अथवा इंद्र है ? या मेरे पुण्यों का समूह ही मूर्तिमान् हो कर आया है ? जिस विधाताने सौभाग्यादि गुणराशिवाले इस वर का निर्माण किया है मैं उसके हाथों पर वारफेर करती हूँ ।
इतने ही में मृगलोचनाने भली प्रकार राजीमती का मनोगत भाव जान कर प्रीतिपूर्वक हास्य से चंद्रानना से कहा - हे सखी चंद्रानना ! यद्यपि यह वर सर्वगुण संपन्न है तथापि इस में एक दूषण तो है ही, किन्तु इस वर को चाहने वाली राजीमती के सुनते हुए वह कहा नहीं जा सकता। फिर चंद्राननाने भी कहा हे सखी मृगलोचना ! मुझे भी वह दूषण मालूम है पर इस वक्त तो मौन ही रहना चाहिये । यह सुन राजीमती लज्जा से मध्यस्थता दिखलाती हुई बोली - हे सखियो ! भुवन में अद्भुत भाग्यवती किसी भी कन्या का यह भर्तार हो परन्तु सर्व
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सातव व्याख्यान.
॥ १०८ ॥