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गुणसुन्दर ऐसे इस वर में जो दूषण बतलाया जाता है यह सचमुच ही दूध में पूरे बतलाने के समान है। फिर दोनों सखियाँ विनोदपूर्वक बोलीं--हे राजीमती ! प्रथम तो वर गौर वर्णवाला होना चाहिये, दूसरे गुण तो परिचय होने पर मालूम होते हैं, परन्तु वह गौरपन तो इसमें काजल के समान है। ____यह सुनकर ईर्ष्या सहित राजीमती सखियों को कहने लगी--आज तक मुझे यह भ्रम था कि तुम दोनों चतुर हो, परन्तु आज वह भ्रम दूर होगया । क्यों कि सर्व गुणों का कारणरूप जो श्यामपणा है उसे भूषण होने पर भी तुम दूषणतया कथन करती हो । अब तुम सावधान होकर सुनो, श्यामता और श्याम वस्तुओं का आश्रय करने में कैसे गुण रहे हुए हैं और केवल गौरपणे में कैसे दूषण होते हैं । पृथवी, चित्रावेल, अगर, कस्तूरी, मेघ, आँख की कीकी, केश, कसोटी, स्याही तथा रात्रि ये सब काली वस्तुयें महाफलवाली होती हैं। ये श्यामता में गुण बतलाये हैं। तथा कपूर में कोयला, चन्द्र में चिन्ह, आँख में कीकी, भोजन में काली मिरच,
और चित्र में रेखा; ये वस्तुयें यद्यपि श्याम रंगवाली हैं तथापि सफेद वस्तुओं की शोभा बढ़ानेवाली हैं। यह श्यामता के आश्रय में गुण समझना चाहिये। अब सुफेद वस्तुओं के दूषण देखो-नमक खारा होता है, बरफ दहनकारी होता है, अति सफेद शरीरवाला रोगी होता है तथा चूना भी परवश ही गुणवाला है। क्योंकि वह पान में मिलने पर ही रंग देता है।
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