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अब श्रीकृष्ण महाराजने अपने मनोरथ को सफल होता हुआ देख कर शीघ्र ही राजा उग्रसेन के राजमहल का रास्ता लिया और उनकी महान् रूपवती पुत्री राजीमति की मंगनी की। और क्रोष्टिक नामक ज्योतिषी से विवाह का शुभ दिन पूछा। उसने कहा-इस वर्षाकाल में अन्य भी शुभ कार्य नहीं करता तब फिर गृहस्थियों के लिए मुख्य कार्य विवाह की तो बात ही क्या ? समुद्रविजय राजाने कहा-कालक्षेप की जरुरत नहीं है, क्योंकि कृष्णजीने बड़ी मुस्किल से नेमिकुमार को विवाह मंजूर कराया है। इस लिए जिसमें कोई विघ्न न आवे ऐसा नजदिक का दिन बतलाओ। तब ज्योतिषीने श्रावण सुदि छठ का दिन बतलाया ।
प्रभु का विवाहोत्सव । उत्तम शंगार युक्त, प्रजा को हर्षित करनेवाले, रथ में बैठे हुए, उत्तम छत्र धारण कराये हुए, समुद्रविजय आदि दश दशाह और केशव, बलभद्र आदि विशिष्ट परिवारवाले तथा शिवादेवी आदि स्त्रियों से जिस के धवल मंगल गीत गाये जा रहे हैं ऐसे श्रीनेमिकुमार व्याहने को चले।
आगे जा कर नेमिकुमारने अपने स्थवान से पूछा-यह पताकाओं से सुशोभित महल किस का है ? रथवान अंगुली उठा कर बोला-यह आप के ससुर राजा उग्रसेन का महल है और वे सामने खडी जो दो लड़कियाँ परस्पर बातें कर रही हैं वे आप की पत्नी राजीमति की चंद्रानना और मृगलोचना नामा दोनों सहेलियाँ हैं । उस वक्त नेमिकुमार को देख मृगलोचना चंद्रानना को कहने लगी-हे सखी ! स्त्रियों में तो एक
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