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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
॥७७॥
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उपसर्ग किया और मेघने उन्हें यह जान कर प्रभुसे क्षमा माँगी । फिर प्रभु क्लिष्ट कर्मों की निर्जरा के लिए लाट देश की ओर पधारे। वहां हिलनादि बहुतसे उपसर्ग मनुष्यों की तरफ से हुए। फिर पूर्णकलश नामा अनार्य ग्राम में जाते हुए मार्ग में प्रभु को दो चोर मिले। वे प्रभु को देख अपशुकन की बुद्धि से तरवार से मारने को दौड़े। उसी वक्त इंद्रने उपयोग से यह देख उसका निवारण किया ।
पांचवा चौमासा - भगवान्ने भद्रिका नगरी में किया । और वहां पर चार मासक्षपण का तप किया । चौमासा व्यतीत होने पर क्रमसे तम्बाल ग्राममें पधारे। वहाँ से पार्श्वनाथ प्रभु के संतानीय नन्दिषेण नामक आचार्य बहुत से परिवार सहित काउस्सग ध्यान से रहे हुए थे। रात्रि के समय कोतवाल के पुत्रने उन्हें चोर समझ कर भालेसे मार दिया। वे अवधिज्ञान प्राप्त कर देवलोक में गये वहां पर भी गोशाला का वृत्तान्त पूर्वोक्त मुनिचंद्र के समान ही समझ लेना चाहिये । वहां से प्रभु कूपिक सन्निवेश पधारे। वहां जासूस की शंकासे कोतवालोंने उन्हें पकड लिया | परन्तु पार्श्वनाथ प्रभु की शिष्या जो बादमें परिव्राजिका होगयी थी विजया और प्रगल्भाने प्रभु को पहचान लेने से छुडाया । वहाँ से गोशाला प्रभु से जुदा होकर दूसरे मार्ग से कहीं जा रहा था । रास्ते में उसे पांचसौ चोरोंने मामा मामा कह कर पकड लिया और बारीबारी से उसके कंधे पर चढने लगे । थक कर उसने विचारा कि इस से तो प्रभु के ही साथ रहना ठीक था। अब वह फिर प्रभु को ढूँढने लगा । प्रभु भी वैशाली नगरी में जाकर एक शून्य पडी लुहार की शाला में ध्यानस्थ हो खड़े रहे । लुहार छह महीने बीमार
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पांचवां व्याख्यान.
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