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कर प्रभु के पास आया तब सिद्धार्थने उसे सब वृत्तान्त सुनाया । विश्वास करने के लिए उसने वमन किया, सही मालूम होने से क्रोधित हो उसका घर जलाने को चल पड़ा। घर न मिलने से प्रभु नामसे वह मुहल्ला ही जला दिया । वहाँ से प्रभु हरिद्र सन्निवेश से बाहर हरिद्र वृक्ष के नीचे ध्यानमुद्रा में रहे । वहाँ ही कितने एक राहगीर ठहरे हुए थे, उन्हों ने प्रभु के पैरों को चुल्हा बनाकर आग जला कर उस पर खीर पकाई | प्रभु ध्यानमुद्रा में अचल रहने से उनके पैर जल गये। यह देख कर गोशाला वहाँसे भाग गया। वहाँ से प्रभु मंगलानामा गाँव में गये और वासुदेव के मंदिर में ध्यान लगा कर रहे । वहाँ बालकों को डराने के लिए आँखे फाड़ कर चेष्टा करते हुए गोशाला को उनके मांबापने खूब पीटा और मुनिपिशाच समझ कर छोड़ दिया । वहाँसे प्रभु आवर्त्त ग्राम में बलदेव के मंदिर में ध्यान मुद्रा से रहे । वहाँ पर गोशाला बालकों को डराने के लिए मुखविकार करने लगा, उनके माबापोंने सोचा कि यह पागल है इसको मारने से क्या फायदा ? इसके गुरु को ही मारना चाहिये । यह विचार कर जब वे प्रभु को मारने आये तब तुरन्त ही बलदेव की मूर्ति हल उठा कर सामने होगई। इस चमत्कार से वे सब के सब प्रभु के चरणों में पड़ गये। वहाँ से प्रभु चोराक सन्निवेश में पधारे। वहाँ एक मंडपमें भोजन पक रहा था, यह देख गोशाला वारंवार नीचे नमकर देखने लगा, तब उन लोगोंने उसे चोर समझकर पीटा। गोशालाने क्रोधित हो प्रभु के नामसे उनका मंडप जला दिया । वहाँसे प्रभु कलम्बुका सन्निवेश प्रति गये । वहाँ पर मेघ और कालहस्ति नामा दो भाई रहते थे। कालहस्तिने प्रभु को
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