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श्री
पाचवा व्याख्यान.
कल्पसूत्र हिन्दी बनुवाद ।
॥७६ ॥
महिमा के लिए देवोंने वहां प्रकाश किया । तब गोशाला बोला कि देखो अब उनका उपाश्रय जल रहा है। सिद्धार्थने उसे फिर सत्य घटना सुनाई तो वह उनके शिष्यों को वहां धमका कर आया । प्रभु फिर चौरों की
ओर गये। वहां पर प्रभु और गोशाला को जासूस समझकर पकड लिया। प्रथम गोशाला को अभी हवालत में डाला ही था कि इतने में ही वहांपर उत्पल नामक नैमित्तिये की सोमा और जयन्ती नामा बहनें आ गई, जो संयम लेकर पालने में असमर्थ हो परिव्राजिका बन गई थी। उन्होंने प्रभु को देख पहिचान लिया और उस संकट से बचाया । वहां से प्रभु पृष्टचंपा तरफ गये।
चौथा चातुर्मास-भगवानने चार मासक्षपण तप करके पृष्टचम्पा में किया। प्रभु को पारणा कराने के लिए जीर्ण सेठ भावना माता था परंतु पूर्ण सेठ के यहां पारणा हुआ । चौमासा बीतने पर प्रभु कायंगल सन्निवेश में जाकर श्रावस्थी नगरी में पधारे। वहां बाहर के भाग में कायोत्सर्ग ध्यान में रहे। वहां सिद्धार्थने गोशालासे कहा कि आज तूं मनुष्य मांसभक्षण करेगा । गोशाला भी इसका निवारण करने को भिक्षा के लिए बनियों के घर में गया। वहां एक पितृदत्त नामा वणिक रहता था। उसकी स्त्री सदैव मृतक बच्चे को जन्म देती थी। उसे शिवदत्त नामक निमित्तियेने बच्चे जीने का उपाय बतलाया कि तुम्हारे मृतक बालक का मांस खीर में मिलाकर किसी भिक्षुक को खिलाना । उसने उसी विधिपूर्वक गोशाला को खिलाया और घर जला देनेके डरसे घर का दरवाजा भी बदला दिया । गोशाला जब उस बनिये के घर भोजन
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