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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पड़कर उठा था, उसी दिन औजार लेकर शाला में आया, वहाँ प्रभु को देख अपशकुन बुद्धि से घण उठा कर उन्हें मारने को लपका तब अवधिज्ञान से जान कर इंद्रने तुरंत वहाँ आकर उसी घण से लुहार को मार डाला । वहाँ से प्रभु सामाक सन्निवेश में गये । वहाँ उद्यान में विभेलक यक्षने प्रभु की महिमा की । वहाँ से शालीशीर्ष नामक ग्राम के उद्यान में माह मास में ध्यानस्थ रहे हुए प्रभु को त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में अपमानित हुई स्त्री जो व्यन्तरी हुई थी वह तापसीका रूप धारण कर जल से भरी हुई जटाओं द्वारा अन्य से सहन न हो सके ऐसा शीत उपसर्ग करने लगी। परन्तु फिर भी प्रभु को निश्चल देख कर शान्त हो उनकी स्तुति करने लगी। छठ के तप द्वारा उपसर्ग को सहन करते हुए और विशुद्ध होते हुए प्रभु को उस वक्त लोकावधि ज्ञान उत्पन्न हुआ । छठ्ठा चौमासा - भगवानने भद्रिका नगरी में किया। उस में चौमासी तप किया अर्थात् लगातार चार महिने की तपश्चर्या की । उस समय उन्होंने अनेक प्रकार के अभिग्रह धारण किये। अब छः मास के बाद फिर से गोशाला आ मिला । प्रभु बाहर के भाग में पारणा कर फिर ऋतुबद्ध मगध भूमि में उपसर्ग रहित विचरे । सातवाँ चौमासा - भगवान आलंभिका में बिराजे और चौमासी तप किया। बाहर पारणा कर कुण्डग नामा सन्निवेश में ध्यानस्थ हो वासुदेव के चैत्य में रहे । वहाँ गोशाला भी वासुदेव की मूर्ति से परांमुख हो मुख प्रति अधिष्टान करके खड़ा रहा, इस से लोगोंने उसे खूब पीटा । वहाँ से प्रभु मर्द्दन नामक गाम में जाकर For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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