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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद | ॥ ६४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पचास धनुष्य लम्बी और पच्चीस धनुष्य चौड़ी एवं छत्तीस धनुष्य ऊंची बहुत से स्तंभों से शोभती हुई, मणि रत्नों से एवं सुवर्ण से विचित्र तथा दिव्य प्रभाव से देवकृत पालखी जिस के अन्दर समा गई ऐसी चंद्रप्रभा नामक पालखी में बैठकर प्रभु दीक्षा ग्रहण करने के लिए चले। शेष वर्णन सूत्रकार स्वयं करते हैं । भगवान का दीक्षा महोत्सव । उस काल और उस समय में जो शरत्काल का पहला महीना और पहला ही पश्न था । उस मागशिर मास का कृष्णपक्ष उसकी दशमी के दिन, पूर्वदिशा तरफ छाया के आनेपर प्रमाण सहित न कम न अधिक ऐसी पीच्छली पोरसी के आनेपर सुव्रत नामक दिन में, विजय नामक मुहूर्त्त में, छठ की तपस्या कर के, शुद्ध लेश्यावाले प्रभु पूर्वोक्त चंद्रप्रभा नामक पालखी में पूर्व दिशा सन्मुख सिंहासन पर बैठे। वहाँ प्रभु के दाहिनी ओर हंस के लक्षण युक्त वस्त्र धोती आदि लेकर महत्तरिका बैठी । बाँई ओर दीक्षा के उपकरण लेकर प्रभु की धाव माता बैठी । प्रभु के पिछली तरफ हाथ में श्वेत छत्र लेकर उत्तम शृंगार धारण कर एक तरुणी स्त्री बैठी। ईशान कोण में एक स्त्री संपूर्ण भरा हुआ कलश लेकर बैठी। अग्रिकोण में मणिमय पंखा हाथ में लेकर बैठी। फिर नन्दिवर्धन राजा की आज्ञा से राजपुरुष जब उस पालखी को उठाते हैं तब तुरन्त ही शक्रेंद्र दाहिनी तरफ की बांह को उठाता है। ईशानेंद्र उत्तर तरफ की ऊपर की बहू को उठाता है । चमरेंद्र दक्षिण तरफ की नीचे की बांह को उठाता है तथा बलींद्र उत्तर तरफ की नीचे की बांह को उठाता है। शेष भुवनपति, ज्योतिष्क और वैमानिक For Private And Personal पांचवां व्याख्यान. ॥ ६४ ॥
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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