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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra II www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इंद्र हाथ लगाते हैं । आकाश से देवता पंचवर्ण के पुष्पों की वृष्टि करते हैं, देवदुंदुभि बजाते हैं, वे अपनी २ योग्यता के अनुसार पालखी को उठाते हैं । फिर शक्रेंद्र और ईशानेंद्र उन बांहो को छोड़ कर प्रभु को चामर झोलते हैं । इस प्रकार जब प्रभु पालखी में बैठ कर दीक्षा लेने जा रहे हैं तब अनेकानेक देव देवियों से आकाशतल शरद् ऋतु में पद्म सरोवर के तुल्य, प्रफुल्लित अलसी के वन समान, कलियर के वन सरीखा, चंपा के बगीचे सदृश, तथा पुष्पित तिल के वन समान मनोहर शोभता था । निरन्तर बजते हुए भंभा, भेरी, मृदंग, दुंदुभि और शंखादि के निनाद गगनतल में पसर रहे थे । उन निरन्तर बजनेवाले अनेक बाजों के सुन्दर शब्द सुनकर नगर की स्त्रियाँ अपने कार्यों को छोड़ कर वहाँ आती हुई अपनी विविध प्रकार की चेष्टाओं से मनुष्यों को आश्चर्यचकित करती थीं। कहा भी है स्त्रियों को तीन चीज अधिक प्यारी होती हैं एक तो क्लेश, दूसरा काजल और तीसरा सिंदूर । ऐसे ही ये तीन वस्तु भी प्यारी होती हैं एक दूध, दूसरा जमाई और तीसरा बाजा । उन की चेष्टायें निम्न प्रकार थीं- कितनीएक बालिकायें शीघ्रता के कारण अपने गालों पर काजल के अंक और आँखों में कस्तूरी डाल आईं। कितनीएक जल्दी की उत्सुकता से चित्त उधर होने से गले के आभूषण पैरों में और पैरों के गले में पहन आईं। कितनीएकने गले का हार तगड़ी की जगह पहना हुआ था और तगड़ी हार की जगह पहनी थी । गोशीर्ष चंदन पैरों पर लगाया हुआ और मेंहदी शरीर पर लगाई थी । कोई अर्ध स्नान किये भीने ही कपडों से पानी टपकाती आ रही थी । कोई खुले केश पगली सी हुई दौडती For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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