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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsur Gyanmandir समझना चाहिये। प्रभु की बाल्यावस्था बीतने पर, जवानी आने पर अर्थात् भोग समर्थ होने पर उसके मातपिताने शुभ मुहर्त देखकर प्रभु के साथ समरवीर राजा की यशोदा नामकी पुत्री का पाणिग्रहण कराया । उसके साथ सुख भोगते हुए प्रभु को एक पुत्री हुई और उसे एक राजकुमार जमाली नामक अपने भानजे के साथ ब्याह दिया। उसके भी एक शेषवती नामवाली पुत्री हुई जो प्रभु की दोयती लगती थी। श्रमण भगवान श्रीमहावीर प्रभु के पिता काश्यप गोत्रीय थे। उनके तीन नाम थे-सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी । श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु की माता का वाशिष्ठ गोत्र था। इस प्रकार उसके भी तीन नाम थे-त्रिशला, विदेहदिना और प्रीतिकारिणी । श्रमण भगवन्त के चचा का नाम सुपार्श्व, बड़े भाई का नन्दिवर्धन, बहिन का सुदर्शना और स्त्री का नाम यशोदा जो कौडिन्य गोत्रीय थी। श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु की पुत्री काश्यप गोत्रवाली थी और उसके दो नाम थे, एक अणोजा और दूसरा प्रियदर्शना । श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर प्रभु की कौशिक गौत्रवाली एक दोयती थी। उसके दो नाम ये थे-शेषवती और यशस्वी । भगवान का दीक्षावसर अब सकल कलाओ में कुशल, निपुण प्रतिज्ञावाले, सुन्दर रूप युक्त, सर्व गुणों से अलंकृत, सरल, विनयवान् प्रख्यात सिद्धार्थ राजपुत्र ज्ञातकुल में चंद्र समान, वज्रऋषभनाराच संहननवाले, समचतुरस्त्र For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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