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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य थी, वैसे इस कलियुग में अब के धर्मों के अस्तित्व से सच्चे धर्म की पहचान होना कठिन है। परन्तु इन सर्व धर्मों का सेवन परिचय करते रहने से कभी न कभी जैसे दिव्य औषधि मिली, वैसे ही सत्यधर्म की प्राप्ति अवश्य हो जायगी। आचार्य हेमचन्द्र के निष्पक्ष और सरल उपदेश का असर राजा के दिल पर खूब अच्छा पडा । क्योंकि राजा जिसको सत्य धर्म पूछता, वह अपने ही धर्म को सत्यधर्म बतलाता और दूसरे के धर्म को असत्य कहना। हरएक मनुष्य 'अपने बेर मीठे और दूसरों के खट्टे के अनुसार अपना अच्छा ही कहना सीखा है, परन्तु बुद्धिमान् ऐसे कथन से संतुष्ट नहीं होते हैं। निंदा और असुया का सामना शक्तिशाली तेजस्वीओं की शक्तिकीर्ति और उन्नति को नहीं सहन करने के कारण और स्वयं वैसी योग्यता प्राप्त करने में असमर्थ होने के कारण प्राकृतलोक ऐसे ज्योतिर्धरों की निन्दा-असूया करनेवाले निकलते हैं। यह अनादि काल का सृष्टि का नियम है। शक्ति का ही विरोध होता है । जिसमें कोई खास शक्ति नहीं है उसका न कोई निन्दक और न कोई शत्रु होता है । विरोध के दांतों में ही उन्नति है। ऐसे सिद्धान्त से महापुरुष निन्दकों से डरते नहीं हैं। सत्य की परीक्षा होने पर निन्दक ही डरते और शर्मीन्दे होते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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