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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य २३१ आदमी से प्राप्त की। उसने वह भोजन के साथ अपने पति को खिला दी । उससे पति बैल हो गया । यशोमती, फिर पुरुष बनाने की विधि नहीं जानती थी। खूब रोने पीटने लगी । लेने गई पूत खो आई कसम' जैसा हुआ। भूल होने के बाद पश्चात्ताप का कोई अर्थ नहीं है। वह बल को बराबर जंगल में चराती थी । उस रास्ते से एक दिन शिव-पार्वती विमानस्थ जा रहे थे। पार्वती इस दुःख को मिटाने का शिवजी से साग्रह अनुरोध किया । शिवजी ने कहा 'यहाँ जो एक वृक्ष है इसकी छाया में पास ही पुरुष को मनुष्य बनाने की औषधि है।' यह सुनकर यशोमती अपने पति बैल को वहीं चराती रही। कौनसी औषधि है, यह वह नहीं जानती थी । उस जगह चराते २ एक दिन वही औषधि बैल के खाने में आई और वह फिर मनुष्य शंख शेठ हो गया । इस कथा को सुनाकर उपनय करते हुए हेमचन्द्राचार्य ने राजा से कहा :तिरोधीयत दर्भाधैर्यथा दिव्यं तदौषधम् । तथाऽमुष्मिन् युगे सत्यो धो धर्मान्तरैर्नृप! ॥ परं समग्रधर्माणां सेवनात् कस्यचित् क्वचित् ! जायते शुद्धधर्माप्तिदर्भच्छन्नौषधाप्तिवत् । . -कुमारपाल प्रबन्ध पृ० १४ अर्थात्:- हे राजन् जैखे दर्भादि घास के साथ मिल जाने से दिव्य औषधि विशेषरूप से नहीं पहचानी जाती For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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