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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य देवबोध' आचार्य की सभा में आया । आचार्य ने खडे हो कर उसका स्वागत किया। अपने आसन पर बैठाकर उसको विद्वत्ता को भूरी २ प्रशंसा को । राजगुरु हेमचन्द्र का दिल कितना उदार था । उन्होंने श्रीपाल और देववोध के वीच जो वैमनस्य था, श्रीपाल को समझाकर दूर कराया। १५ 'देवबोध' एक प्रसिद्ध धर्माचार्य था । काशी और कान्यकुब्ज के राजा उसको पूजते थे । वह पूर्व देश से पाटण (गुजरात) आया था । कुमारपाल जैन होने के बाद भी इसको ब्राह्मणों ने बुलाया था । उसने कुमारपाल को कई इन्द्रजाल के चमत्कार बताकर फिर शैव होने को बाधित किया था । परन्तु आचार्य हेमचन्द्र ने कुमारपाल को इससे भी अधिक चमत्कार बताये, जिससे कुमारपाल का मन जैनधर्म पर स्थित रहा था । वादिदेवसूरि के साथ भी देवबोध की मूठभेड हुई थी। परन्तु पीछे से उनमें अच्छी मैत्री हुई थी (देखो प्र. च. में वादिदेवसूर, चरित्र ६० से ७७ पद्य) । हेमचन्द्रतरित्र में देवबोध के सम्बन्ध में १८१ से ३०९ श्लोक तक वर्णन है । भाण्डारकर रिसर्चविभाग में 'महाभारत' का उत्तम संपादन होता है, उसके संपादक महोदय ने देवबोध के विषय में हमें पूछा था, जिसका हमने संक्षेप में उत्तर दिया था। उनके लिखने से यह भी पता चला है कि "देवबोध' का 'महाभारत' पर एक टिप्पण भी लिखा हुआ प्राप्त हुआ है । मैं अभी तक यह निश्चित नहीं कह सकता हूं कि वह टिप्पण कार और प्रभावकचरित्र का देवबोध एकही है या पृषक ? परन्तु इतना तो निसन्देह है कि प्र० चरित्रोक्त देवबोध एक ऐतिहासिक प्रसिद्ध विद्वान् था । पिछली जिन्दगी इन्होंने पूर्व देश में गंगा के किनारे जाफर पर्ण की थी । संभवतः 'विश्वेश्वर' भी इन का अपर नाम था । For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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