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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य हेमचन्द्रसूरि और उनका साहित्य २२७ दरबार में विद्वान् रहा करते थे और दूर-दूर से कई विद्वान् आकर उसको अपनी विद्वत्ता बताते थे। ऐसे मौके पर वह हेमचन्द्राचार्य की सलाह सहायता को काम में लेता था । श्वेश्वादिदेवसरि' और दिगम्बर कुमुदचन्द्राचार्य का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ सिद्धराज के सभापतित्व में हुआ था । उसमें हेमचन्द्र को सिद्धराज ने बहुमानपूर्वक स्थान दिया था। देववोध सन्यासी आचार्य हेमचन्द्रसूरि में उदारता एवं गुणग्रहण बुद्धि थी । एक दिन भागवतदर्शनी एक प्रसिद्ध आचाय देववोध सन्यासी पोटण के बाहर आकर ठहरा। वह विद्वान् मान्त्रिक एवं अहंभु था। उसने सिद्धराज को अपने आगमन की खबर पहुँचाई । सन्यासी समझ कर सिद्धराज सामने लेने के लिए अपने मित्र कवि श्रीपाल के साथ उसके पास गया । इन दोनों में स्पर्धा बढ गई । कुछ दिनों के पश्चात् मालूम हुआ कि उस सन्यासी में आचार शैथिल्य था । तो भी हेमचन्द्र उसकी विद्वत्ता को देखकर उसका आदर मान करते थे । एक दिन वह १ इस वाद के विषय में हमने प्रमाणनयतत्वालोक की प्रस्तावना में विशद वर्णन लिखा है । 'मुद्रितकुमुद्रचन्द्रप्रकरण' इस वाद के विषय में ही बना है। २ यह एक बहुत बड़ा भारी कवि था । सिद्धराज इसको 'बन्धु' कहता था । इस पर राजा की महती प्रीति थी । For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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