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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ शिक्षा और परीक्षा मेरा तो इतना कहना है कि, हमारा ध्येय परीक्षा नहीं होना चाहिये, शिक्षा होना चाहिये । परीक्षा तो केवल साधन है। हमने पूर्ण शिक्षा प्राप्त की है। इसलिये परीक्षा देने में हमें कोई भी भय नहीं, बल्कि आत्म सन्तोष है । शिक्षा का फल कर्तव्य-ज्ञान और चारत्र संगठन है ।* पाठ्यक्रम के विषय में कुछ कहना अप्रासंगिक नहीं होगा । वर्तमान पाठयक्रम ( Course ) छात्र की शक्तियों को विकसित करने के लिए नहीं, बल्कि कुण्ठित करने के लिए है । विषयों और पुस्तकों की संख्या इतनी अधिक होती है कि, छात्र एक भी विषय का गहरा ज्ञान प्राप्त महीं कर सकता। इन विषयों में ऐसे बहुत थोडे रख्ने ___ * इन दिनों हिन्दुस्तान के अनेक भागों में, पैसे पैदा करने के लिए, संस्कृत और हिन्दी की अनेक परीक्षाएँ खुल गयी है, जिनके द्वारा विद्या की बडी उपाधियां लेकर लोग अपने को बड़े समझने लगते हैं, और अधिक अध्ययन छोड बैठते हैं। इस प्रकार अपनी उन्नति से हाथ धो बैठते हैं । इस तरह की अलीगढ की एक परीक्षा-समिति यहां खुली हुई है, जिसमें किसी भी छोटी श्रेणी का विद्यार्थी इतिहास तथा साहित्याचार्य तक की उच्च पदवियां प्राप्त कर लेता है। अत: ऐसी अप्रामाणिक परीक्षाओं में बैठने की सरकारी पाठशालाओं के छात्रों को मनाही की जानी चाहिये और इस प्रकार के डिगरी धारियों के रियासत में कोई जगह न दी जानी चाहिये । For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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