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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाठ्यक्रम की समालोचना और मत १ प्रवेशिका कक्षा प्रवेशिका के प्रथम वर्ष में हिन्दी भाषा द्वारा छात्र को प्रमाण-प्रमेय का लक्षण और हेतुदृष्टान्तादि का साधारण शान करवाना चाहिये । दूसरे वर्ष में न्याय में तर्क संग्रह रखना चाहिए ( मूलमात्र ) । तीसरे वर्ष में परीक्षा मुख के साथ वाचनमात्र के लिए या विकल्प में श्रीप्रमाणनयतत्त्वालोक मूलमात्र रखना अच्छा होगा, क्यो कि इन दोनों ग्रन्थों की पद्धति में बहुत कुछ समानता है । जो विषय परीक्षामुख में समझ में नहीं आता, वह विषय विस्तृत पद्धति का होने से प्रमाणनयतत्त्वालोक' में साफ होता हैं । जैसे उपलब्धि, अनुपलब्धि, वाद, हेत्वाभासादि । ब्याकरण वर्ष १ में लघुकौमदी के बदले सिद्धान्त रत्निका' जैन व्याकरण पूर्वार्द्ध या हैमलघुप्रक्रिया ये दोनों जैनेन्द्रप्रक्रिया के विकल्प रूप में रखने चाहिएँ । अजैन से जैन व्याकरण पढोना अच्छा है । ब्याकरण वर्ष २ में लघु १--यह जैनन्याय का सुन्दर प्रक्रिया ग्रन्थ सूत्रबद्र आठ परिच्छेदों में विभक्त है । इसपर एक छोटी वालबोधनी संस्कृत टीका नया बनी है। उस टीका सहित यह सुन्दररीत्या श्री विजयधर्मसूरि जैन ग्रन्थमाला उज्जैन से प्रकाशित हुआ है ।। .२- यह ग्रन्थ सुन्दर टीप्पणी प्रस्तावनादि युक्त श्रीयशोविजय जी जैन ग्रन्थमाला भावनगर में छपा है । यह बहुत ही छोटा व्याकरण सारस्वत के जैसा है। व्याकरण का प्रत्येक विषय संक्षेप से For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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