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पाठ्यक्रम की समालोचना और मत
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वना, वागन्तरादि से तय्यार करके स्वल्प मूल्य में छात्रोंको देना चाहिए ।
७-'प्रवेशिका' कक्षा से लेकर 'शास्त्रीयकक्षा के आ। चौथे वर्ष तक छात्रों को संस्कृत में गद्य-पद्य लिखने और बोलने की फरजीयात (नियमित) शिक्षा देनी चाहिए; नही तो विद्वान् होने पर भी छात्र अपने विषय में भूक लूले रह जाते हैं।
८-व्याकरण के ऊपर उपेक्षा रखना भविष्य के लिए बहुत ही हानिकर है, अतः मध्यमाका पूरा अभ्यास तो कम से कम अच्छा होना चाहिए ।
९-प्राकृत व्याकरण के साथ या उसके बाद प्राकृत दयाश्रय काव्य (भट्टिकाव्य जैसा) और कुछ जैन नाटक विशारद और शास्त्रीय कक्षा में रखने चाहिएँ, जिससे, प्राकृत और साहित्यज्ञान का विकास हो ।
समालोचना और ग्रन्थ परिवर्तन ।
जैन मित्र अंक ३५ आषाडसुदि ११ के अंक में पठनक्रम छपा है, उसी को लक्ष्य में रखकर जहां अन्य ग्रन्थ रखने की आवश्यकता मुझे प्रतीत होती है उस कक्षा वर्ष
और ग्रंथ का नाम मैं लिखता हूं। अगर मैं पूर्व ग्रन्थको निकालने को न लिखू तो वह मान्य है ऐसा समझना ।
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