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जैन साहित्य की प्रौढता और समृद्धता
समस्त जैन साहित्य का सूचीपत्र होना तो एक लेख क्या, परन्तु लगभग एक हजार पृष्ठ की पुस्तक में भी समावेश होना दुःशक्य है। क्योंकि महर्षिशिरोमणी श्री उमास्वाति वाचक ने पांच सौ ग्रंथ बनाये, हरिभद्र आचार्य, जो कि जन्मसे वैदिक ब्राह्मण थे परन्तु एक विदुषी साध्वी से प्रबुद्ध होकर तेजस्वी जैनाचार्य हुए और आपने न्याय आदि विषय के चौदह सौ चौतालीस (१४४४) प्रकांड ग्रन्थों की रचना की । वादिदेवसरि ने स्याद द रत्नाकरादि जैसे अति प्रौढ तर्क के अनेक ग्रन्थ बनाए । आचार्यशेखर सर्वज्ञतुल्य श्री हेमचन्द्र भगवान् ने तो प्रायः सभी विषय के तीन करोड और पचास लाख श्लोक बनाकर जैन साहित्य का मुख उज्ज्वल और गौरवान्वित किया । रत्नप्रभसूरि, मल्लिषेणमूरि, विद्यानन्दस्वामी, अक लंक भट, अभयदेवसूरि प्रभृति नामांकित विद्वानों ने तर्क शास्त्र को उन्नत स्फुरित और यशस्वी बनाया । महाकवि धनपाल, धनंपय श्रीपाल, वस्तुपाल, तेजपाल, प्रभृति श्रावक विद्वान् कवियों ने साहित्य शास्त्र को पुष्ट और विकसित किया । श्रीमद् यशोविजय उपाध्याय आदि ने जैन न्याय को जन्म दिया । मेघविजय उपाध्याय आदि ने माघ और नैषध आदिके क्लिष्ट ग्रन्थों की समस्यापूत्ति की और मेघमहोदय, चन्द्रप्रभा ब्याकरण, हीरसौभाग्य, विजयप्रशस्ति जैसे ज्योतिष ब्याकरण और साहित्य ग्रंथों का निर्माण किया। ऐसी दशा में में कितने ग्रन्थों को इस लेख में लिखकर बता सकता हूं विषयवार ग्रन्थों की सूवा अग्रिम पत्र में प्रकाशित होगी।
वरि, विद्यालय गौरवान्वित
अभयदेवसूरि
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