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जैन साहित्य की प्रौढता और समृद्रता
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विज्ञान है । ऐसा होते हुए भी मुझे दुःख और शरम के साथ कहना पड़ता है कि ऐसे अनूठे साहित्य की जगत् ने काफी कदर और विचारणा नहीं की है। सारे जगत् ने तो क्या, परन्तु जैन जगत् ने भी उतनी कदर और विचारणा नहीं की है। अपने घर में सब प्रकार की सामग्री होते हुए भी हम दूसरों के घर का मुंह ताकते हैं। मैं समस्त देशों के जैनों को अनुरोध के साथ कहूंगा कि अपने यहां सभी विषय के प्रौढ और पूर्ण हजारों ग्रन्थ मौजूद हैं उनको पढाइए, और लाहौर देहली आदि यूनिवर्सिटियों के अंदर प्रत्येक विषय का साहित्य दाखिल करवाइए । श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब से भेरा विशेष अनुरोध है कि वह भरसक प्रयत्न करके लाहौर यूनीवर्सिटी में स्वतंत्र जैन न्याय, काव्य की परीक्षा में मौलिक ग्रंथ प्रवेश करा कर पंजाब की सभी जैन संस्थाओं हाई स्कूलों में उनको पढावें । एक भाई ने मुझे कहा था कि हम जैनों को इस बात को पता ही नहीं कि हमारे यहां किस प्रकार का और कितना साहित्य है, तो हम कैसे पढ़ सकते और दाखिल करवा सकते हैं । श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब के दो उत्साही युवक भाई हीरालाल जी और ईश्वर लाल जी ने मुझ से कहा था कि वैसे छपे हुए अवशिष्ट और प्राचीन ग्रन्थों का नाम
और स्थान लिख कर हमें दो, उसको पंजाब के जैनों को मालूम करने के लिए हम अपने प्रभात में दे देवेंगे । मैंने इस कार्य को उचित समझ कर यह लेख लिखने का विचार किया है।
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