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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ भगवान् महावीर शिष्य इन्द्रभूति और सुधर्म प्रमुख महषियों ने इनका उपदेश ग्रहण करके फिर उसे सूत्र रूपमें बनाया । जिसको आगम कहते हैं । फिर भगवान् महावीर के ९८० बर्षों बाद तक कंठस्थ रखे हुए ओगमों को लोगों ने पुस्तकों, में लिखना शुरू किया और उसके कई विभाग हुए । आचाराग, सूत्रकृताङ्गादि उसके नाम हैं । भगवान् महावीरने सर्वत्र उपदेश देकर असाधारण सफलता प्राप्त की थी। १४००० त्यागी (साधु), ३६००० साध्वी, १५९००० उपासक और ३१८००० उपासिकाएं भगवान् महावीर के भक्त शिष्य हुए थे। श्रेणिक (बिंबिसार ) नन्दिवद्धन, चण्डप्रद्योतन, चेटक, विजयराजा, उदयन वत्सराज, प्रसन्नचन्द्र, कोशिक और अदीन शत्रु प्रभृति राजा महावीर के भक्त बने थे। बाद करने वाले ४०० वादी महावीर के शिष्य थे। गोशालक भी भगवान महावीर का शिष्य था, उसने आजीवक मत निकाला था। करीब तीस वर्षों तक भगवात महावीर ने उपदेश का कार्य किया। राजगृह (नालन्दा) श्रावस्ती और वैशाली प्रमुख नगरों में इन्होंने चातुर्मास किये । मगध, बेंगाल और बिहार की प्रजाका प्रेम भगवान् महावीर के प्रति अधिक था । ७१॥ वर्ष और दो दिन इनकी आयु थी। कार्तिक कृष्णा अमावास्या को इनका महानिर्वाण (मोक्ष) पावापुरी* में, हस्तिपाल राजा की कचहरी में, हुआ । * पावापुरी बिहारशरीफ (पटने) के पास है। इस पवित्र स्थान की देख रेख बाबू धन्नूलाल सुचन्ती (बिहार शरीफ ) और उनके परिवार वाले कहते हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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