________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भगवान् महावीर
भगवान् महावीर के जीवन में खासकर तीन विशेषताएँ प्रतीत होती हैं। पूर्ण अहिंसा, प्रचण्ड तप और स्याद्वाद ।
भगवान् महावीर के समय में अजितकेशम्बली, प्रबुद्ध कात्यायन, गोशालक, संजयवेलीपुत्र और पूर्णकाश्यप आदि के तात्कालिक दर्शनों के अतिरिक्त वेदान्त आदि दर्शनों का भी काफी प्रचार था। इन सबका कथन एक दूसरे के विरुद्ध था । जिससे उनमें खण्डन-मण्डन का कालुष्य बार-बार उत्पन्न होता था। इन सबका विरोध मिटाने के लिए भगवान महावीर ने स्याद्वाद का उपदेश किया । 'स्याद्वाद' एक सिद्धान्त है। एक ही वस्तु में भिन्न-भिन्न देश-काल अवस्थाओं की अपेक्षा से अनेक विरुद्ध या अविरुद्ध धर्मा की संभावना हो सकती है, अतः एकान्त रीति से अमुक वस्तु में अमुक ही धर्म है, दूसरा नहीं, ऐसा कहना मिथ्या है। स्याद्वाद यह वस्तु मात्र को पूर्ण रीति से पहचानने " का नाम है । इसको अनेकान्त वाद भी कहते हैं। इसके द्वारा हरएक वस्तु की परीक्षा करने पर वस्तु का स्वरूप यथार्थ रूप में प्रकट होता है । इस सिद्वान्त को जानने
और पालन करने से जगत् का वैर विरोध शान्त हो सकता है । सभी धमों का समन्वय हो जाता है।
भगवान् महावीर के उपदेश में त्याग, संयम और जीवादि पदार्थों के स्वरूप की प्रधानता है । इनके मुख्य
..21
For Private and Personal Use Only