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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५४ www.kobatirth.org भगवान् महावीर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रह कर भी साधु के नियमों का पालन करते थे । आत्मचिन्तन करते थे ! महावीर के पास प्रचुर धन था । अतः इन्होंने दीन दुःखियों को दान देना शुरू किया । याचक जो चाहता था, वह महावीर से पाता था । मगध ( बिहार ) के अति रिक्त अन्य प्रांत के लोग भी इनके पास दान लेने आते थे। हजारों गरीबों की गरीबी इन्होंने मिटाई । तीस वर्षकी ऊम्र में, मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी को, राज वैभव कुटुम्ब परिवारादिका सर्वथा त्याग कर, इन्होंने दीक्षा ( सन्यास ) ली । अब ये निर्ग्रन्थ हुए। उस समय भगवान महावीर स्वामी को "मनः पर्यायज्ञान" उत्पन्न हुआ, यानि ये किसी भी मनुष्य और पशु के मनोगत भावों को जानने में समर्थ हुए । भगवान् महावीर ने समझा कि, जबतक आत्माकी पूर्णता प्रकट न हो जाय, इन्द्रिय और मनके दोष जीते न जायँ, तबतक अपना और दूसरे का संपूर्ण उद्धार होना कठिन है। अतः उग्र तप करके पहले वीतराग और सर्वज्ञ होना चाहिए । इस खयालसे इन्होंने साढे बारह वर्षों तक प्रचण्ड तपस्या की । छ-छ महीनों तक इन्होंने बिना अन्न जल के उपवास किया । महीनों तक खड़े खड़े ध्यान किया, निद्रा और आलस्यका सर्वथा त्याग किया । इस तपःसाधना साढे बारह वर्षोंमें केवल ३४९ दिन ही महावीर स्वामी ने भोजन किया, सो भी एक ही बार और For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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