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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ भगवान महावीर उच्च जाति के लोग मनमाना अन्याय और अत्याचार कर सकते थे। जगत् दुःखी था । सद्भाग्य से उसी समय भारत में दो महा पुरुष पैदा हुए । उनमें एक दीर्घतपस्वी भगवान् महावीर थे। जैन-धर्म में कुल चौबीस तीर्थङ्कर हुए हैं, जिनमें भगवान् महावीर अन्तिम है। विदेह (विहार) प्रान्त के क्षत्रियकुण्ड अथवा कुण्डपुर (कुण्डलपुर) नगर में भगवान् महावीर का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम 'सिद्धार्थ राजा' और माता का नाम था 'त्रिशला देवी' । सिद्धार्थ-कुल प्रतिष्ठित था । इक्ष्वाकु वंश के अन्तर्गत ज्ञात वंश के ये क्षत्रिय राजा थे। इनके कुल की महत्ता इससे भी प्रकट होती है कि, वैशाली के प्रसिद्ध सम्राट चेटक की पुत्री 'त्रिशला देवी' सिद्धार्थ राजा से व्याही थीं, जो भगवान् महावीर की जननी हैं। आज से २५३३ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को भगवान् महावीर जन्ने थे । इन्हें दिव्य-ज्ञान और अलौकिक शक्तियाँ जन्म से ही प्राप्त थीं। इनके गर्भ में आते ही सिद्धार्थ राजा के धन-धान्य की वृद्धि हुई थी; इसी लिए माता-पिता ने इनका नाम 'वर्द्धमान' रखा था । इन का लालन-पालन और शिक्षण उत्तम प्रकार से हुआ था । युवावस्था प्राप्त होते-होते इन्होंने आदर्श क्षत्रियोचित सभी कलाएँ और विद्याएँ हस्तगत कर ली थी। ये शारीरिक बल में प्रवल थे। युवावस्था में इनका मन जरा भी चञ्चल नहीं बना For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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