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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir झांसी का इतिहास में जाओ। हमने हंस कर कहा कि हम खंडेवाल तो नहीं है। हमारे साथ सेठ मक्खनलालजी जैन थे, हम सब हंसते २ मन्दिर में चले गये । मुसलमान क्रिश्चियन आर्यसमाजी तो अन्य धर्म वालों को अपने स्थानों मं बुला बुला कर ले जाते हैं, अपने धर्मका परिचय कराते हैं, परन्तु जनी और वैदिक लोग अपने मन्दिर में जाने वालों को रोकते है यह कैसी शोचनीय अवस्था है ? यही बात' हमारे जैन साहित्य के प्रचार के विषय में है । इसीलिये तो दयानन्द सरस्वती और उनके भक्तों ने लिखा है कि "जैन लोग अपना साहित्य अजैनों को नहीं बताते हैं और न देते हैं, इसमें यह कारण है कि जैनधर्म में पोल हैं गपोडे हैं।" जैनधर्म जैसे पवित्र युक्तिपूर्ण और सर्वग्राह्य धर्म के लिए यह कलङ्क कितना भद्दा और झूठा है । अस्तु ! इस मन्दिर में सुन्दरलाल जैन ब्रह्मचारी जी पूजारी हैं, जिन्होंने अपने द्रव्य से ही यह मन्दिर बनवाया है। इसमें मूल नायक महावीरजी की प्रतिमा विक्रम सं० ११७४ को है। बाई ओर चन्द्रप्रभु जी की प्रतिमा वि० १२१४ और दाई ओर अजीतनाथ की वि० १५०९ साल की पाषाण प्रतिमा है । रवित्रत कथा का वृत्तान्त १० हस्तचित्रित तसवीरों में सुन्दरता से उतारा है । तसवीरें प्राचीन है । सदर में एक मन्दिर है जिसमें मूलनायक की श्याम पाषाण निर्मित वि० सम्वत् १९०० की प्रतिष्ठित है । दोनों पार्श्वमें तीन मूर्तियाँ कुछ लालास को लिए हुए पत्थर की खडी है जिसमें से एक वि० सं० ११२८ की प्रतिष्ठित है। यह तीनों मूर्तियां एक For Private and Personal Use Only
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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