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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथड
व्यापार और राजनीति में कुशल और बहादुर था । पेथड की तरह उसने भी यशस्वी कार्य किये। पिता के पुण्यार्थ झांझन ने विक्रम संवत् १३४८ माघ शुक्ल ५ को आबू, शत्रुजय और गिरिनार का संघ (यात्रा) निकाला, जिसमें ढाई लाख मनुष्य सम्मिलित थे।
पेथड कुमार का जीवन व्यापारी और अधिकारी दोनों को बोधप्रद है । मालवे के इतिहास में पेथड और झांझन कुमार का बहुत बडा स्थान है। आशा है कि पाठक इस जीवन से लाभ उठावेंगे ।
पेथड चरित्र के साधन
पेय डकुमार के जीवन के विषय में सबसे पुराना ग्रन्थ सुकृतसागर संस्कृत काव्य मिला है, जो उसके दो सौ वर्ष के बाद करीब बना है । इसके कर्ता रत्नमंडनगणि है। सोमतिलकका "चैत्यस्तोत्र” भी इसमें उपयोगी है। यह स्तोत्र मुनिसुंदर की गुर्वावली (यशोविजय ग्रं. से मुद्रित पृ. १८) में छपा है । उस गुर्वावली में से भी कुछ जानने को मिलता है । इन ग्रन्थों के आधार से उपदेशतरङ्गिणी, उपदेशसप्तति, झांझनप्रबन्ध, धर्मसागरीयपट्टावली और श्रीहसविजयजी महाराजकृत पेथड के चरित्र में लिखा गया है।
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