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मंडपदुर्ग और अमात्य पेथट
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जीरावला और शत्रुञ्जय तीर्थों का संघ निकाला' । गिरनार पर ५६ घडी सुवर्ण देकर उसने इन्द्रमाला पहनी और उस तीर्थ को श्वेताम्बर तीर्थ सिद्ध किया । कई गरीबों को दान दिया। कर्णावती के सारंगदेव राजा ने इस मन्त्री का सत्कार किया ।
इस प्रकार पेथड मंत्री ने व्यापारी जीवन, राज्यनीति जीवन और धार्मिक जीवन को बड़ी योग्यता और कुश
१.गिरनार और शत्रुजय ये दो जैनों के मुख्य तीर्थ काठियावाड में है। आबू और जीरावला मारवाड में है। अनेक मनुष्यों का एकत्रित होकर तीर्थ स्थान में जाने का नाम जैनों में संघ कहा जाता है । और जो अपने खर्च से ले जाता है वह संघवी कहा जाता है । चण्डसिंह का पुत्र अन्य पेथड ने आबू पर वस्तुपाल के मन्दिर का जीर्णो द्रार वि० सं०१३७८ में करवाया था एसा श्रीयुत जिनविजय जी ने प्राचीन जैनलेखसंग्रह भाग २ के १३७ में लिखा है। उस मन्दिर में यह श्लोक खुदा हुआ है ।।
आचन्द्रार्क नन्दतादेष स घाधीशः श्रीमान् पेथडः संघयुक्तः । जीणोद्धार वस्तुपालस्य चैत्ये तेने येनेहार्बुदाद्री स्वसारः ॥
आबू का उपर्युक्त्त मन्दिर वि० स०. १३६६ के करीब अला-: उद्दीन खील जी द्वारा तूटा जाने का महामहोपात्र्याय गौरीशंकर जी ओझा जी ने अनुमान किया है । देखो, सीरोहोराज्य इतिहास पृ. ७०,
२. गिरनार के मन्दिर मे ११००००० रुपये भेट किये ।
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