________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०८
महाकवि शोभन और उनका काव्य
ही छोड़कर चले जाते हैं । शोभन मुनि के लिए भी ऐसा ही हुआ। इनको बुखार का भयंकर रोग हो गया । परिणाम यह हुआ कि युगवस्था में ही ये इस असार संसार को छोड कर देवलोक के अतिथि हो गये। यह दुर्भाग्य की बात है कि निश्चित साधनों के अभाव से हम यह बात नहीं जानते हैं कि इनकी मृत्यु किस कारण से, किस स्थान पर और किस दिन हुई ? परन्तु इतनी बात तो श्रीमान् जिनविजयजी द्वारा सपांदित 'प्रबन्धचिन्तामणि' की आवृत्ति के 'भोजभीमप्रवन्ध' में मिलती है कि काव्य बनाने की एकाग्रता से शोभनमुनि एक महिला के यहां तीन बार गौचरी (भिक्षा) लेने गये थे। इसलिए उनको उस महिला की नजर लग गयी और स्वर्गवास हो गया। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जिस महिला के घर तीन बार गौचरी जाने का वर्णन 'प्रभावकचरित्र' में लिखा गया है (देखो, इसी लेख में शोभनमुनि कृति में) उसी महिला की नजर संभवतः शोभन मुनि को लगी होगी। ऐसा होने से साधुओं की मृत्यु होती है, ऐसे उदाहरण बहुत ही कम सुनने में आते हैं। परन्तु यह बोत ऐतिहासिक ग्रन्थों में है, अतः इस बात को झूठ कहने का हम साहस तो नहीं कर सकते । उपर्युक्त कारण से गुजरात में
· १ इतश्च शोभनः स्तुतिकरण ध्यानाद् एकम्या गृहे त्रिगमनात् तल्या दृष्टिदोषाद् मृतः ॥ प्रांत निजभ्रातुःपात् स्तुतीनां वृति का यित्वा अनशनात् सौधर्मे गतः । देखो- प्रबन्धचिंतामणि, पृ. ४२ ।।
२ हम लेखक के इस विचार से बिलकुल सहमत नहीं । यह तो मनगढन्त कथा जान पडती है ।
For Private and Personal Use Only