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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org महाकवि शोभन और उनका काव्य Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir · का अस्तित्व इसा की ग्यारहवीं शताब्दी में था । उस राजा भोज के समय मालवे में रोजा भोज शासक थे । साथ शोभन मुनि का सम्बन्ध अच्छा रहा । शोभन के पूर्वज और उनका प्रारम्भिक जीवन ८९ शोभन मुनि का जीवन दो प्रकार के संस्कारों से बना था। जन्म से उनमें वैदिक संस्कारों का समावेश था । और साधुदीक्षा लेने के बाद जैन संस्कारों ने इनमें अपूर्व सुधार कर नवीन ही तेज उत्पन्न कर दिया । जन्म से ये वैदिक ब्राह्मण थे। यहां पर इनके भाई धनपाल की कृति 'तिलक मंजरी' की ओर भी दृष्टि डालना चाहिये । महाकवि धनपाल अपना परिचय देते हुए लिखते हैं मध्यदेश' (जिसकी आजकल संयुक्तप्रांत कहते हैं ) के 'सांकाश्य' नगर में देवर्षि नामक एक ब्राह्मण रहता था । उसके पुत्र का नाम सर्वदेव था । यह सर्व शास्त्र - कला और ग्रन्थ रचना में बहुत ही निपुण था । इस सर्वदेव के दो पुत्र हुए बडे का नाम धनपाल और छोटे का नाम शोभन था । इस लेख के चरित्रनायक शोभन यही हैं । For Private and Personal Use Only १. 'आसीद् द्वि जन्माऽखिलमध्यदेशे प्रकाशसांकाश्य निवेशजन्म | अलब्ध देवर्षिरिति प्रसिद्धि, यो दानवर्षित्व विभूषितोऽपिं ॥ ५१ ॥ शास्त्रेष्वधीती, कुशल: कलासु बन्धे च बोधे च गिरां प्रकृष्टः तस्याSSत्मजन्मा समभून्महात्मा देवः स्वयं भूवि सर्वदेव; ॥५२॥ ( तिलक मंजरी की पीठिका
SR No.020374
Book TitleHimanshuvijayjina Lekho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Vidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages597
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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