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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. स्वासोत्स्वास लेतेवख्त खांसी, आतेवख्त छींक, लेते वख्त ऊबासी, लेतेवख्त और डकार लेतेवख्त जैनमुनि अपने मुखकों अपने हाथसे ढांके खयाल किजिये ! अगर मुहपत्ति मुखपर बांधनेका हुकम होता तो मुखको हाथसे ढांकनां क्यों फरमाते ? इसका कोई जवाब देवे. " अगर कोई तेहरीर करे कि जैनमुनिकों पीले कपडे रखना किस जैनशास्त्रमें कहा है, जवाब में मालुम हो निशीथमूत्र के अठारहमें ऊदेशेमें लिखा है कि जैनमुनि नये कपडेको तीनपसली जितना रंगदेवे, जिनकों कहो वे महाशय ऊसशास्त्रकों देखे, और अपना शक रफाकरे, बत्तीससूत्र में नंदीसूत्र सामील है, उसमें निशीथसूत्र मंजुर रखना फरमाया, इसलिये जैनमुनिकों कपडे रंगनेकी बातकों कौन जैन इनकार करसकता है ? अगर कोई इस दलीलकों पेंश करे कि रात्रीकों पानी रखना जैनमुनिको मुनासिव है ? जवाब में मालुम हो. बेशक ! मुनासिव क्योंकि रात्रीके वख्त फर्ज करो! किसी जैनमुनिकों मलोत्सर्ग करनेकी हाजत हुई तो बतलाइये ! ऊस वख्त अशुचि दुर करनेके लिये पानीकी जरूरत होगी या नहीं ? इसलिये चुना डालकर जैनमुनि रात्रीकों पानी रखे तो कोई हर्ज नही. अगर कोई बयान करे कि जैनमुनिकों रात्रीके वख्त विहार करना किस जैनशास्त्रमें लिखा है ? जवाब में मालुम हो, रात्री के वख्त विहार करना जैनमुनिकों मना है, मगर कोई कारण बनजाय तो औघनिर्युक्तिशास्त्र में कहा भी है, रात्रीकों जैनमुनि विहार करे, ऊत्तराध्यनसूत्रमें बयान है कि एक चंडरुद्रनामके जैनाचार्य और ऊनके शिष्य कारणसे रात्रीको विहार करगये थे. पहले जमाने में जैनमुनि वनखंड में बागबगिचेमें या उद्यान में रहते थे. आजकल गांव में और फिर अछे अच्छे मकान में रहते हैं, कहिये ! यह रवाज Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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