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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन. लिखी हो, ऊसका ऊपदेश करना जैनमुनिका फर्ज है. तीर्थकरोके समवसरणमें सचित फुल बीछाये जाते थे. खुद तीर्थकर महाराज रत्नसिंहासनपर बैठते थे, अपने ज्ञानसे वे जानते थे कि समवसरणमें बैठते वख्त फुलोका स्पर्श जैनमुनियोकों होगा, फिर फुल विछानेकी मनाइ तीर्थकरोने क्यों नही किई ? अगर कहा जाय वे फुल अचित थे तो ऐसा पाठ किसी जैनआगमका कोई जाहिर करे. ___ अगर कोई इस सवालकों पेंश करे कि-जैनमुनिकों मुहपति हाथमें रखना किस जैनशास्त्रमें लिखा है. (जवाव.) ओघनियुक्तिशास्त्रमें लिखा है कि मुहपति हाथमें रखना. मुखपर बांधना किसी जैनशास्त्रमें नहीं लिखा, अगर कहा है तो कोई पाठ बतलावे, मुहपत्ति मुखपर बांधना वायुकायके जीवोकी हिफाजत के लिये नही होसकता. मुखमेसे निकलते हुवे भाषा वर्गणाके पुदगल चारस्पर्शी होते है और वायुकायके जीवोंका शरीर आठस्पर्शी होता है. चारस्पर्शी आठस्पर्शीकी घात नही करसकते. अगर कहा जाय भाषावर्गणाके पुदगल मुखसे बहार निकले बाद आठस्पर्शी होजायगे और फिर वायुकायके जीवोंकी घात करेगें, जवाबमें मालुम हो मुहपत्ति बांधनेसेभी भाषावर्गणाके पुदगल मुखसे बहार निकले बाद आठस्पी होजायगे और वायुकायके जीवोकी हिंसा करेंगे तो फिर बतलाइये ! मुहपत्ति मुखपर बांधनेसे क्या फायदा हुवा ? आचारांगसूत्रके दुसरे श्रुतस्कंधमें दुसरे अध्ययनके तीसरे ऊदेशमें पाठ है कि से भिखुधा भिखुणीचा उसासमाणेवा निसासमाणेवा कासमाणेवा छीयमाणेचा भायमाणेवा उढवाएवा वाणिसग्गेवा करेमाणे पूवामेव आसयंवा पोसयंवा पाणिणा परिपेहिता ततो संजयामेव ओसासेजा जाच वायणिसग्गवा करेजा. For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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