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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir १६ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. था, इसलिये पाप नही तो इसीतरह मूर्तिपूजा के बारेमें भी इरादेपर खयाल किजिये, एक कचे पानीके थालमें एक मखी गिरपडी ऊसकों बचाने के इरादेसें तुर्त एक श्रावकने निकाली, बतलाइये ! कचे पानी अंगुलि डालनेसें जो पानीके जीवों की हिंसा उसका पाप किसको लगा ? अगर कहा जाय मखी निकालनेवाले श्रावकका इरादा जीव बचानेका था, इसलिये पानीके जीवोकी जो द्रव्यहिंसा हुई उसका पाप नही, क्योंकि पाप या पुन्य बांधना मनः परिणामके ताल्लुक है, जब मनः परिणाम अशुभ नही तो पाप कैसे बंधे ? इसीतरह मूर्तिपूजा के लिये भी मनः परिणामपर बात है. अगर कोई कहे श्राद्धविधि ग्रंथ में लिखा है जिनमंदिर की धजाकी छाया जिसके घरपर दिनके अवल और अखीरमहरमें पडे ऊस घरवालेका अछा नही, जिनमंदिर तो अछा है, फिर उसकी धजाकी छाया अछी क्यों नही ? जवाबमें मालुम हो, अच्छी चीज भी विधि से सेवन करो तभी फायदेमंद होती हैं, श्रावकों का फर्ज है, जिनमंदिर की आशातना से बचे, और इसीलिये कुछ फासले पर बसे, नजीक जिनमंदिरके अपना घर होनेपर आशातना होनेका सवव है, बात आशातना मिटानेके लियेथी, इसको दुसरे रास्ते ऊतारना मुनासिव नही. जैनशास्त्रमें तीर्थ दो तरह के फरमाये, एक स्थावरतीर्थ दुसरा जंगमतीर्थ, स्थावरतीर्थ, अष्टापद, समेतशिखर, शत्रुंजयगिरनार, चंपापुरी, अयोध्या, पावापुरी वगेरा, और जंगमतीर्थं, साधुसाधवी, श्रावक-श्राविका, जैनागममें दोनों तरहके तीर्थं मंजुर रखना फरमाये, तीर्थकर रिषभदेव महाराज अष्टापदपर मुक्त हुवे, बीस तीर्थंकर समेतशिखरपर मुक्त हुवे तीर्थंकर वासुपूज्य महाराज चंपापुरी नेमिनाथ महाराज गिरनार पर्वतपर तीर्थंकर For Private And Personal Use Only
SR No.020373
Book TitleHidayat Butparstiye Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherPruthviraj Ratanlal Muta
Publication Year1916
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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