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हिदायत बुतपरस्तिये जैन,
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महावीर स्वामी पावापुरीमें मुक्त हुने, तीर्थ अष्टापदकी जियारतकों गौतमस्वामी गये. इसीतरह दुसरे जैनमुनि अगर तीर्थंकरोकी निर्वाणभूमिपर जियारतको जावे तो क्या हर्ज है ? सावीत हुवा जैनशास्त्रों जैनतीयोंकी जियारत जाना लिखा है.
जीवाभित्र बयान है कि भुवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिकदेव ते नंदीश्वरद्वीपके जिनमंदिरोंकी जियारतको जाते है, और जलसा करते है, भगवतीसूत्रमें लिखा हैं, देवलोक में जहां सुधर्मासभाके माणवक चैत्यस्तंभोमें जिनोद्रोकी डाढा रखी हुई हैं, देवतेलोग ऊनका विनय करते है, देखिये ! यह जडवस्तुकी इज्जत हुई या नहीं ? मूर्त्तिपूजाकी पुख्तगीकी यहभी एक उमदा दलिल है, सूत्रऊपाशकदशांग में आनंद और कामदेव वगेरा श्रावकोंने जिनप्रतिमाका वंदन नमन करना मंजुर रखा, ज्ञातासूत्रमें द्रौपदीजीने जिनप्रतिमाकी पूजा किड़, और नमुथ्थुर्णका पाठ पढकर भावस्तत्र किया, रायपसेणीसूत्रमें सूर्याभ देवताने और जीवाभिगमसूत्रमें विजयदेवताने जिनप्रतिमाकी पूजा किई लिखा है, अगर जैनमजहब में मूर्तिपूजा कदीमसें न होती तो जैनशास्त्रों में ये पाठ क्यों होता ?
ज्ञातासूत्रमें और अंतगडसूत्रमें कहा है, शत्रुंजय पर्वतपर अमुक जैनमुनि सिद्ध हुवे, मानुष्योत्तरं पर्वतपर और नंदीश्वरद्वीपमें जो जैनमंदिर मौजूद है, जंघाचरंण जैनमुनि ऊनकी जियारतकों जाते है, साबीत हुवा तीर्थभूमि अच्छे इरादे पैदा होनेकी जगह हैं, अगर कहा जाय अढाइद्वीप में सब जगह सिद्ध हुवे है, फिर तीर्थभूमिकी बात ज्यादा क्या हुई ? जवाव में मालुम हो ज्यादा बात यह हुई कि अभी वहां जैनमंदिर और मोक्षगामी जैनमुनियोके चरण
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बने हुवे है, इसीलिये कहा जाता है, तीर्थभूमि ज्यादा धर्मपुख्तगीका सव है. जैनशास्त्रोंमें लिखा है, भरतराजा - चतुर्विधसंघकों लेकर
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