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हिदायत बुतपरस्तिये जैन. १५ बहुतसे कीडे-मकोडे फिर रहे थे, एकशख्श जीवोको बचानेके इरादेसे देखभालकर चलता था, दुसरा बिनादेखे बेरहेम होकर चलताथा. जीवोको बचानेका इरादा ऊसका नही था, योगानुयोग ऐसा बना कि देखकर चलनेवालेके पांवसे एककीडा दबकर मरगया, विनादेखे चलनेवालेके पांवसे एकभी कीडा नही मरा, बतलाइये ! पापी कौन ? और पुन्यवान कौन ? अगर कहा जाय देखकर चलनेवाला पुन्यवान है, दशवकालिकसूत्रमें पाठ है कि
जयं चरे जयं चिठे-जयं आसे जयं सये,
जयं भासंतो भुंजतो-पावकम् न बद्धह. यतनासे देखभालकर चलनेवालेको भावहिंसा नहीं लगती, इसलिये पाप नहीं, जो शख्श विनादेखे बेरहेम होकर चलता था.
चुनाचे ! उसके पांवसें कोईभी जीव नही मरा, तोभी उसका इरादा जीव बचानेका नहीं था इसलिये ऊसको पाप है, ज्ञातासूत्रमें बयान है कि एक सुबुद्धिनामके दिवानने जित शत्रुराजाकों धर्मपावंद बनानेके लिये एक मोरीका पानी मंगवाकर ऊसकों कईदफे एक घडेसे दुसरे घडेमें डाला और साफ किया, खूशबूदार चीजोसे लज्जतदार बनाया, इसतरह करनेसे वायुकाय वगेरा जीवोंकी हिंसा हुई. बतलाइये ! ऊसका पाप सुबुद्धिदिवानकों लगा या किसको ? अगर कहा जाय सुबुद्धिदिवानका इरादा पापका नही था, धर्मका था, इसलिये पाप नही, तो इसीतरह दुसरे कार्यके लियेभी खयाल करलेना चाहिये. तीर्थंकर मल्लिनाथजीने गृहस्थापनमें छह राजोको प्रतिबोध देनेके लिये. सुवर्णकी पुतली भीतरसे पोकल बनाइथी, और उसमें हमेशां भोजनका एकएक कवल डालतेथे, उसमें जो जीव पैदा हुवे और चवे बतलाइये ! ऊसका पाप किसकों लगा? अगर कहा जाय तीर्थकर मल्लिनाथजीका इरादा पापका नहीं था, छह राजोको धर्मपावंद बनानेका
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