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साध्या विशेषणको (१) पस्थिति वृत्ति साध्य संदेह जनकत्व नियतं यज्जन्यत्वं तन्निरूपितार्या साध्या विशेषणको ||पस्थित्यवृत्ति साध्य संदेह जनकत्व नियतं यज्जन्यत्वं तन्निरूपितायां च जनकताया मवच्छेदिका या प्रकारता तस्याः साध्याभाव विषयकत्व घटित धर्मावच्छिन्न संशय जनकता वच्छेदका वच्छिन्न जन्यता निरूपितायां तादृश धर्मा न वच्छिन्न साध्य (२) विषयकत्व घटित धर्मावच्छिन्न जनकतावच्छेदकावच्छिन्न जन्यता निरूपितायां च जनकताया मवच्छेदिका या प्रकारता तस्या वा निवेशा नोक्त दोषः। साध्याभावो पस्थितित्वा वच्छिन्नाया अपि जनकतायाः साध्य विषयकत्व घटित धर्मावच्छिन्नतया विरुद्धातिव्याप्ते दुरितया साध्य विषयकत्व घटित धर्मावच्छिन्न जनकतायां साध्याभाव विषयकत्वा नवच्छिन्नत्व प्रवेशः साध्य मुख्यविशेष्यता घटित धर्मा वच्छिन्नत्वं निवेश्यैव वा तादृशातिव्याप्ति वारणीये त्युच्यते । तथापि (३) वन्हिमवृत्ति वन्यभाववद् व्यावृत्त धूमवानयं वन्हिमद् व्यावृत्त वन्हयभावववृत्ति जलत्व वानय मित्यादि ज्ञानीय धूमादि प्रकारता मादायाति प्रसंगो दुार एव (४) वन्हि मदृत्ति धर्मवत्ता ज्ञान जन्य वन्हयुपस्थिते वन्यभाव वदृत्ति धर्मवत्ता झानजन्य वन्यभावोपस्थिति सहकारेण संशयजनकता ववन्यभाव वड्यावृत्त धर्मवत्ता
(१) टि–साध्यता बच्छेदका वच्छिन्न प्रकारता निरूपित प्रकारिता शून्य इत्यर्थः ।
(२) टि-अत्र मुख्य विशेष्यत्वं वक्तव्यं अन्यथा वन्हि कालीन रासक वा नवे ति संशय जनक बन्हि कालीन रासभ वन्हवभाव कालीन रासभाभार सहचरित धूमवानिति जान मादाय वन्हिमान धमादित्य पा तिव्याप्ति रिति ध्येयं ॥ ॥
(३) टि-तथाच परदले साध्याभाव विषयकत्व घटित धर्मा न वच्छिन्नत्वं न देय मिति भाव: ॥ (४) टि-साध्य समानाधिकरण धर्म वत्ता ज्ञान जन्यो पस्थिति तदभाव समानाधिकरण धर्म वत्ता ज्ञान जन्यो पस्थित्यो मिथ स्सहकारेण |
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