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कर्पूरादिवर्गः।
७१ टीका-गन्धकोकिला गन्धमालतीकों कहते हैं. ये चमेलीकीतरह सुगंधयुक्त होती है ॥ ११६ ॥ और स्निग्ध, गरम, कफकों दूर करनेवाली तथा तिक्त सुगन्ध इसप्रकार गंधकोकिला होती है और इसीके सदृश गंधमालतीभी जानना.
अथ लामजकमुशीरवत्पीतच्छवि तृणविशेषः. लामजकं सुतालं स्यादमृणालं लयं लघुः ॥ ११७॥ इष्टकापथकं सेव्यं नलदं चावदातकम् । लामजकं हिमं तिक्तं लघु दोषामयास्त्रजित् ॥ ११८॥
स्वगामयस्वेदकृच्छ्रदाहपित्तास्त्ररोगनुत् । टीका-लामज्जकनामकी खशके सदृश पीली घास होती है. लामज्जक १, सुनाल २, अमृणाल ३, लयलघु ४, ये लामज्जकके नाम हैं ॥ ११७ ।। और इटकापथक, सेव्य, नलद, अवदातक, येभी इसीके नाम हैं, ये शीतल, तिक्त, हलकी, होती है त्रिदोषकी हरनेवाली है ॥ ११८॥ और बचाके रोग, पसीना, मूत्रकृच्छ, तथा दाह, और रक्तपित्त, इनकीभी हरनेवाली है.
अथ एलवालुकं ककोलसदृशं कुष्ठगन्धि तद्गुणाः. एलवालुकमैलेयं सुगन्धि हरिवालुकम् ॥ ११९ ॥ एलवालुकमेलालुकपित्थं पत्रमीरितम् । एल्वालु कटुकं पाके कषायं शीतलं लघु ॥ १२०॥ हन्ति कण्डूव्रणछर्दितृट्कासारुचिहृदुजः।
बलासविषपित्तास्त्रकुष्ठमूत्रगदकमीन् ॥ १२१ ॥ टीका-एलवालकनाम शीतल चीनीकेसदृश कूटके गन्धयुक्त होता है. इसकों वालुककडीभी कहते हैं. एलवालक १, ऐलेय २, सुगन्धि ३, हरिवालुक ४, ॥११९॥ एलवालुक एलालु कथितपत्र ये एलुवालकके नाम हैं. ये कडवा और पाकमें कसेला होता है, शीतल, हलका, होता है ॥ १२० ॥ और खुजली, घाव, वमन, तृषा, कास, और अरुचि इनका हरनेवाला है, और पीडा, कफ, विष, पित्त, रक्त, कुष्ठ, मूत्ररोग, तथा कृमि इनका हरनेवाला है ॥ १२१ ॥
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