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हरीतक्यादिवर्गः। दीपनं लघु तीक्ष्णोष्णं रूक्षं रुज्यं व्यवायि च ॥ २४८ ॥
विबन्धानाहविष्टम्भहृदुग्गौरवशूलनुत् । टीका-विडपाक १, कतक २, द्राविड ३, आसर ४, ये विडनोनके नाम हैं. विड थोडा क्षार, अर्व अध, कफवातका, अनुलोमन करनेवाला होता है ॥२४७॥ ऊपर कफ और नीचे वातकों निकालता है, और ये दीपन, हलका, तीखा, गरम, और रूखा, रुचिको बढानेवाला है ॥ २४८ ॥ और विवन्ध, अफरा, विएम्भ, हृदयकी पीडा, तथा भारीपन शूल इनको हरनेवाला है.
अथ सौवर्चल(सौंचर)नामगुणाः. सौवर्चलं स्याद्रुचकमन्धपाकं च तन्मतम् ॥ २४९ ॥ रुचकं रोचनं भेदि दीपनं पाचनं परम् । सुस्नेहं वातनुन्नातिपित्तकं विषदं लघु ॥ २५०॥
उद्गारशुद्धिदं सूक्ष्मं विबन्धानाहशुलजित् । टीका-मौवर्चल १, रुचक २, अन्धपाक ३, ये सौचरनोनके नाम हैं ॥२४९॥ ये चिको बढाता है, भेदी; दीपन, बहुत पाचक होता है. चिकना, वातका हरनेवाला, और अतिपित्तका करनेवाला, विषका नाशक, और हलका है ॥२५० ।। तथा डकारको शुद्ध करनेवाला है, विबंध, अफरा, तथा शूल, इनकोंभी शमन करनेवाला है.
अथ औद्भिद(कचलोन)नामगुणाः. औद्भिदं पांशुलवणवजातं भूमिजं स्वयम् ॥ २५१॥
क्षारं गुरु कटु स्निग्धं शीतलं वातनाशनम् । टीका-औद्भिद १, पांसुलवण २, ये कचनोनके नाम हैं. जो भूमिसें आपही उत्पन्न होता है । १५१ ॥ क्षार है, भारी और कडवा, स्निग्ध, तथा शीतल है और वातका हरनेवाला है.
अथ चणकक्षारनामगुणाः. चणकाम्लकमत्युष्णं दीपनं दन्तहर्षणम् ॥ २५२ ॥ लवणानुरसं रुच्यं शूलाजीर्णविबन्धनुत् ।
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