________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरीतक्यादिनिघंटे शशिलेखा कृष्णफला सोमा पूतिफलीति च ॥ २०७॥ सोमवल्ली कालमेषी कुष्ठनी च प्रकीर्तिता । बाकुची मधुरा तिक्ता कटुपाका रसायनी ॥ २०८ ॥ विष्टम्भहृद्धिमा रुच्या सरा श्लेष्मास्त्रपित्तनुत् । रक्षा हृद्या श्वासकुष्ठमेहज्वररुमिप्रणुत् ॥ २०९ ॥ तत्फलं पित्तलं कुष्ठकफानिलहरं कटु ।
केश्यं त्वच्यं वमिश्वासकासशोथामपाण्डुनुत् ॥ २१० ॥ टीका-अवल्गुज १, बाकुची २, सोमराजी ३, सुपर्णिका ४, शशिलेखा ५, कृष्णफाला ६, सोमा ७, पूतिफली ८ ॥ २०७॥ सोमवल्ली ९, कालमेषी १०, कुष्टनी, ये वाकुचीके नाम हैं. ये मधुर है, तिक्त है, पाकमें कडवी है, रसायनी है ॥२०८॥ विष्टंभकों हरे है, शीतल है, रुचिको बढानेवाली है, दस्तावर है, कफ तथा रक्तपित्तको नाश करनेवाली है, रूखी है, हृदयको प्रिय है, और श्वासरोग, कुष्ठरोग, प्रमेह तथा ज्वर, कृमि, इनको हरनेवाली है ॥२०९ ॥ और इसका फल पित्तकारक है, कुष्ठ, कफ, वात, इनका नाशक है, कडवा है, बालोंकों हितकारक है, बचाकों अच्छा करनेवाला है, वमन, श्वास, कास, और सूजन, पांडुरोग इनका हरनेवाला है ॥ २१॥
अथ चक्रमर्दनामगुणाः. चक्रमर्दः प्रपुन्नाटो दद्रुनो मेषलोचनः । पद्माटः स्यादेडगजश्चक्री पुन्नाट इत्यपि ॥ २११ ॥ चक्रमर्दो लघुः स्वादु रूक्षः पित्तानिलापहः। हृद्यो हिमः कफश्वासकुष्ठदद्रुकमीन हरेत् ॥ २१२ ॥ हन्त्युष्णं तत्फलं कुष्ठकण्डूदद्भविषानिलान् ।
गुल्मकासकमिश्वासनाशनं कटुकं स्मृतम् ॥ २१३ ॥ टीका-चक्रमर्द १, प्रपुन्नाट २, दद्रुघ्न ३, मेषलोचन ४, पद्माट ५, एडगज ६, चक्री ७, पुन्नाट ८, ये चकोरके नाम हैं ॥ २११ ॥ ये हलका, और मधुर, तथा रूखा होता है, और पित्तवायूका हरनेवाला है, हृदयका प्रिय है, शीतल है,
For Private and Personal Use Only