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हरीतक्यादिनिघंटे जीवकर्षभको बल्यो शीतौ शुक्रकफप्रदौ ॥ १२५॥
मधुरौ पित्तदाहाकार्यवातक्षयापही। टीका-अब जीवक और ऋषभक दोनोंके उत्पत्ति, लक्षण, और नाम तथा गुण सब लिखते हैं. जीवक और ऋषभक दोनों हिमाचलपर्वतके ऊपर होते हैं, जैसा लहसुनका कंद होता है इसीके समान होते हैं, तथा साररहित छोटेछोटे पतेवाले होते हैं ॥ १२३ ॥ और ये कूचीके आकारवाला तौ जीवक होता है, और वृषभके सींगके समान ऋषभक होता है. अब क्रमसे इनके नाम कहते हैं. जीवक १, मधुर २, शृंग ३, इखांग ४, कूर्चशीर्षक ५, ये पांच जीवकके नाम हैं ॥१२४ ॥
और ऋषभ १, वृषभ २, धीर ३, विषाणी ४, द्राक्ष ५, ये पांच नाम ऋषभकके हैं, जीवक और ऋषभक ये दोनों बलकों बढानेवाले हैं, शांत तथा शुक्र और कफ इनकों करनेवाले हैं ॥ १२५ ॥ और मधुरता, पित्त, दाह, तथा रक्त, कृशता, और वातक्षय इनकोंभी हरनेवाले हैं.
अथ मेदामहामेदाया उत्पत्तिलक्षणनामगुणाः. महामेदाभिधः कन्दो मोरङ्गादौ प्रजायते ॥ १२६ ॥ महामेदा तथा मेदा स्यादित्युक्तं मुनीश्वरैः । शुक्लाईकनिभः कन्दो लताजातः सुपाण्डुरः॥ १२७ ॥
महामेदाभिधो ज्ञेयो मेदालक्षणमुच्यते। टीका:-महामेदा नाम जो है सो कन्द मोरंगमें उत्पन्न होता है ॥ १२६ ।। महामेदा तथा मेदा ये दोनों खानमें पैदा होते हैं. ऐसे मुनियोंने कहा है. सफेद
और गीलासा कन्द लतामेंसें होता है. और बहुत शुभ्र होता है ॥ १२७ ॥ ऐसे कन्दको महामेदा जानो, और अव मेदाके लक्षणभी कहते हैं.
शुक्लकन्दो नखच्छेद्यो मेदोधातुमिव स्त्रवेत् ॥ १२८ ॥ यः स मेदेति विज्ञेयो जिज्ञासातत्परैर्जनैः। शल्यपर्णी मणिच्छिद्रा मेदा मेदोभवाऽध्वरा ॥ १२९॥
महामेदा वसुच्छिद्रा त्रिदन्ती देवतामणिः । टीका-सफेद कन्द और जिस्में नखके छेदनेसें धातुके सदृश स्राव हो उस्कों मेदा कहते हैं ॥ १२८ ॥ जाननेकी इच्छा करते जो मनुष्य हैं. अब इनके नाम
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