________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हरीतक्यादिनिघंटे स्वादुपाकरसाः स्निग्धा गुरवो मूत्रला हिमाः ॥ ९३ ॥ पौण्डूको भीरुकश्चापि वंशकः शतपोनकः। कान्तारस्तापसेक्षुश्च काण्डेक्षुः सूचिपत्रकः ॥ ९४॥ नैपालो दीर्घपत्रश्च नीलपोरोऽथ कोशकः। इत्येता जातयस्तेषां कथयामि गुणानपि ॥९५॥ वातपित्तादिशमनो मधुरो रसपाकयोः ।
सुशीतो बृंहणो बल्यः पौण्ड्रको भीरुकस्तथा ॥ ९६ ॥ टीका-आनन्तर इक्षुका वर्ग उसमें पहले ईखके नाम और गुण इक्षु दीर्घछद तथा भूमिरस गूढमूल असिपत्र तथा मधुतृण यह ईखके नामहैं ॥ ९२ ॥ ईख रक्तपित्तकों हरती बलके हित शुक्रको करनेवाले कफकों करनेवाले पाक और रसमें मधुर चिकने भारी मूत्रकों करनेवाले शीतल हैं ॥ ९३ ॥ पौण्ड्रक भीरुक वंशक शतपोनक कान्तार तापसेक्षु काण्डेक्षु सूचित्रक ॥ ९४ ॥ नैपाल दीर्घपत्र नीलपोर और कोशक इसप्रकार ये जाति उनकी हैं और उसके गुणोंकों कहतेहैं ॥९५॥ वातपित्तका शमन मधुर रस और पाकमें सुशीत पुष्ट बलके हित पौंडा और भौररी होतेहैं।।९६॥
अथानेकविधेक्षुगुणाः. कोशकारो गुरुः शीतो रक्तपित्तक्षयापहः । कान्तारेक्षुर्गुरवष्यः श्लेष्मलो बृहणः सरः। दीर्घपोरः सुकठिनः संक्षारो वंशकः स्मृतः॥ ९७॥ शतपर्वा भवेत्किंचित्कोशकारगुणान्वितः। विशेषात्किञ्चिदुष्णश्च सक्षारः पवनापहः ॥९८॥ तापसेक्षुर्भवेन्मृद्दी मधुरा श्लेष्मकोपनी। तर्पणी रुचिकच्चापि वृष्या च बलकारिणी ॥ ९९ ॥ एवं गुणैस्तु काण्डेक्षुः स तु वातप्रकोपनः । सूचीपत्रो नीलपोरो नैपालो दीर्घपत्रकः ॥१०॥ वातलाः कफपित्तनाः सकषाया विदाहिनः।
For Private and Personal Use Only