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हरीतक्यादिनिघंटे ___ कषायमुष्णमम्लं च कटुपाकं च पित्तकत् । टीका-अब पैत्तिकका लक्षण और गुण जो काली मच्छरके समान बहुतछोटी प्रायः वडी पीडिका पुराने वृक्षके खोडमें रहनेवाली पुष्पके आसवकों करतीहै उनकों उनके जाननेवाले मनुष्योंने यहांपर पूतिका ऐसा कहाहै उनका बनायाहुवा घृतके समान जो मधु होताहै उसकों वनके विचरनेवाले जनोंने पौतिक कहाहै ॥ ७४ ॥ पौतिक मधु रूखा उष्ण पित्त दाह रक्त वात इनकों करनेवाला विदाहि और प्रमेह मूत्रकृच्छ्र इनकों हरता तथा गांठ आदि शोषिभीहै । ७५ ॥ छात्रका लक्षण और गुण वर कपिल पीली प्रायः हिमालयके वनमें होतीहै वोह छातेके आकारको बनातीहै उसका मधु छात्रक होताहै ।। ७६ ॥ छात्र कपिल पीला होताहै और पिछिल शीतल भारी पाकमें मधुर होतीहै और कृमि श्वित्र रक्त पित्त प्रमेह इनको हरनेवाला ॥ ७७ ॥ तथा भ्रम तृषा मोह विष इनकों हरता तर्पण गुणमें अधिक होताहै महुवेके वृक्षका गोंद जरत्कारुके आश्रममें उत्पन्न ॥ ७८ ॥ झिरतेहैं सफेद उसकों आर्ध्य ऐसा कहाहै और मालवेमेंभी होताहै जो भौरेके समान मक्खिया तीक्ष्णमुखवाली पीली होतीहै ।। ७९ ॥ वोह आय॑है उनका कियाहुवा जो मधुहै उसकों और आचार्य आर्घ्य कहतेहैं आय॑मधु अतिनेत्रहित और अत्यन्त कफपित्तकों हरताहै ॥८०॥ और कसेला पाक कटु तिक्त बल पुष्टिकों करनेवालाहै प्रायः लताओंके वीच रहनेवाली कपिल छोटे कीडे होतेहैं ॥ ८१॥ वोह थोडा कपिलवर्ण मधु करतीहै उस्कों औदालक मधु कहतेहैं औद्दालक रुचिकों करनेवाला स्वरके हित कुष्ठ विषकों हरता ॥ ८२ ॥ कसेला उष्ण खट्टा पाकमें कटु पित्तकों करनेवाला होताहै.
अथ दलस्य लक्षणं गुणाः. संस्तुत्य पतितं पुष्पाद्यत्तु पत्रोपरि स्थितम् ॥ ८३ ॥ मधुराम्लकषायं च तद्दालं मधु कीर्तितम् । दालं मधु लघु प्रोक्तं दीपनीयं कफापहम् ॥ ८४ ॥ कषायानुरसं रूक्षं रुच्यं छर्दिप्रमेहजित् । अधिकं मधुरं स्निग्धं बृंहणं गुरु भारिकम् ॥ ८५ ॥ नवं मधु भवेत्पुष्ट्यै नातिश्लेष्महरं सरम् । पुराणं ग्राहकं रूक्षं मेदोनमतिलेखनम् ॥ ८६ ॥ मधुनः शर्करायाश्च गुडस्यापि विशेषतः ।
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