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तैलसंधानमद्यमधुइक्षुवर्गः।
३२७ टीका-अलसीका तेल आग्नेय चिकना उष्ण कफपित्तकों करनेवाला ॥ १७॥ पाकमें कटु नेत्रके अहित बलके हित वातहरता भारी होताहै मलकों करनेवाला रसमें मधुर काविज खचाके दोषकों हरता गाढा होताहै ॥ १८ ॥ बस्तिमें पीनेमें तथा अभ्यङ्गमें नासमें कानके डालनेमें अनुपानविधिमेंभी वातशान्तिके अर्थ योजना करनी चाहिये ॥ १९ ॥ कुसुम्भके तेलका गुण कुसुम्भका तेल खट्टा होताहै और उष्ण भारी विदाही नेत्रोंकों अहित बलके हित रक्त पित्त कफ इनकों करनेवालाहै ॥२०॥ अथ खसखसके तेलका गुण खसखसका तेल बलके हित शुक्रकों करनेवाला भारी कहाहै वातहरता और कफहरता शीतल रसपाकमें मधुर होताहै ॥२१॥
अथ एरण्डरालतैलगुणाः. एरण्डतैलं तीक्ष्णोष्णं दीपनं पिच्छिलं गुरु । वृष्यं त्वयं वयःस्थापि मेधाकान्तिबलप्रदम् ॥ २२ ॥ कषायानुरसं सूक्ष्मं योनिशुक्रविशोधनम् । वित्रं स्वादु रसे पाके सतिक्तं कटुकं सरम् ॥ २३ ॥ विषमज्वरहृद्रोगप्टष्टगुह्यादिशुलनुत् । हन्ति वातोदरानाहगुल्माष्ठीलाकटिग्रहान् ॥ २४ ॥ वातशोणितविड्बन्धबध्मशोथामविद्रधीन् । आमवातगजेन्द्रस्य शरीरवनचारिणः ॥ २५॥ एक एव निहन्तायमेरण्डस्नेहकेसरी । तैलं सर्जरसोद्भूतं विस्फोटवणनाशनम् ॥ २६ ॥ कुष्ठपामाकमिहरं वातश्लेष्मामयापहम् । तैलं स्वयोनिगुणकदाग्भटेनाखिलं मतम् ॥ २७ ॥
अतः शेषस्य तैलस्य गुणा ज्ञेया स्वयोनिवत् । टीका-अथ अंडीका तेल अंडीका तेल तीखा गरम दीपन पिच्छिल भारी शुक्रकों करनेवाला बचाके हित वयको स्थापन करनेवाला मेधा कान्ति बल इनकों करनेवालाहै ॥ २२ ॥ पीछेसे कसेला सूक्ष्म योनि शुक्रका शोधन दुर्गधियुक्त रसमें मधुर और पाकमें कुछ तिक्त कटुक सर ॥ २३ ॥ विषमज्वर हरोग पीठ गुदा आदिके शूलकों हरताहै वातोदर अफरा वायगोला अष्ठीला अटिग्रह ॥ २४ ॥ वातरक्त
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