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दुग्धदधितक्रघृतमूत्रवर्गः। तदत्यम्लं दन्तरोमहर्षकण्ठादिदाहकत् ।
अत्यम्लं दीपनं रक्तवातपित्तकरं परम् ॥ ५५ ॥ टीका-उसमें दहीके गुण दही उष्ण दीपन चिकना पीछेसे कसेला भारी पाकमें अम्ल श्वास रक्त पित्त शोथ मेद कफ इनकों करनेवाला है ॥४७॥ मूत्रकच्छ्रमें प्रतिश्यायमें शीतवाले विषमज्वरमें अतीसारमें अरुचिमें कृशतामें प्रशस्त है बल शुक्रकों करनेवाला है ॥ ४८ ॥ अनन्तर दहीका भेद पहिले मन्द उसके अनन्तर मधुर और उसके बाद खट्टा मीठा चौथा खट्टा तथा पांचवा बहुत खट्टा ऐसे दही पांच प्रकारका होता है ॥४९॥ अनन्तर मन्दादियोंके गुण और लक्षण मन्द दुग्ध जो अव्यक्त रस और कुछ गाढा होता है मन्द मलमूत्रकों करनेवाला त्रिदोष तथा विदाहि इनकों करनेवाला है ॥ ५० ॥ जो अच्छीतरह गाढी होजाती है और व्यक्त खादुरस जिस्में होता है उसको बुद्धिवानोंने मधुर कहा है ॥५१॥ मधुर अति अभिष्यन्दी होता है शुक्रकों करनेवाला और मेद कफकों करनेवाला वातहरता पाकमें मधुर रक्तपित्तकों अच्छा करनेवाला होता है ॥५२॥ मीठा खट्टा सान्द्र मधुर पीछेसें कसेला होता है सामान्य दहीके त्यागकरके मीठे खट्टेका गुण जानना चाहिये ॥ ५३ ॥ जो मधुरता ढकी है और जिसमें अम्लता व्यक्त है वोह खट्टा है खट्टा दीपन रक्त पित्त कफ इनको बढानेवाला ॥ ५४॥ वोह बहुत खट्टा दांतहर्ष रोमहर्ष कण्ठ आदिका दाह करनेवाला है बहुत खट्टा दीपन रक्त वात पित्त इनकों करनेवाला है ॥ ५५॥
गोमहिष्यादिदधिगुणाः. गव्यं दधि विशेषेण स्वादम्लं च रुचिप्रदम् । पवित्रं दीपनं हृद्यं पुष्टिकत्पवनापहम् ॥ ५६ ॥ उक्तं दनामशेषाणां मध्ये गव्यं गुणाधिकम् । माहिषं दधि सुस्निग्धं श्लेष्मलं वातपित्तनुत् ॥ ५७ ॥ स्वादुपाकममिष्यन्दि वृष्यं गुर्वस्त्रदूषकम् । आज दध्युत्तमं ग्राहि लघु दोषत्रयापहम् ॥ ५८॥ शस्यते श्वासकासार्शःक्षयकाशेषु दीपनम्। पक्कं दुग्धभवं रुच्यं दधि स्निग्धगुणोत्तम् ॥ ५९॥
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