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हरीतक्यादिनिघंटे सन्तानिका गुरुः शीता वृष्या पित्तास्त्रवातनुत् ।
तर्पणी बृंहणी स्निग्धा बलासबलशुक्रला ॥ ३५॥ टीका-अनन्तर पीयूष किलाट क्षीरशाक तक्रपिंड मोरट इनके लक्षण और गुण तत्काल कच्चा पीयाहुआ गायके दूधकों पीयूष लोकमे पिवस कहतेहैं दूधके पिण्डकों किलाट कहोहै ॥२९॥ किलाट गिजिरी इसमकार लोकमें कहतेहैं कच्चाही जो कटा दूध है उसकों क्षीरशाक कहेतेहैं इसको लोकमें तुषिभरा कहेतेहैं दही अथवा महेसें फटेहुवे दूधकों अच्छे कपडसें बांधकर ॥ ३० ॥ उस द्रवभावके सहितकों तक्रपिण्ड कहेतेहैं फटेहुवे दूधके पानीकों मोरट जेज्जटने कहाहै ॥ ३१ ॥ पीयूष किलाट क्षीरशाक और तक्रपिण्ड यह वृष्य पुष्ट बलकों बढानेवाले ॥३२॥ भारी कफकों करनेवाले हृद्य वातपित्तकों हरताहैं और दीप्ताग्नियोंकों बेनीदवालोंकों
और विद्रधिमें श्रेष्ठ है ॥ ३३ ॥ और मुखशोष तृषा दाह रक्तपित्त ज्वर इनकों हरताहै चीनीके सहित मोरट हलका बलकर रुचिकों करनेवाला है ॥ ३४ ॥ मलाईके गुण मलाई भारी शीतल शुक्रकों करनेवाली रक्तपित्त वात इनको हरनेवाली तर्पण पुष्ट चिकनी और कफ बल शुक्र इनको करनेवाल्महै ॥ ३५ ॥
___ अथ शर्करायुक्तादिदुग्धगुणाः. खण्डेन सहितं दुग्धं कफकत्पवनापहम् । सितासितोपलायुक्तं शुक्रलं त्रिमलापहम् ॥ ३६ ॥ सगुडं मूत्रकृच्छ्रघ्नं पित्तश्लेष्मकरं परम् । रात्रौ चन्द्रगुणाधिक्याझ्यायामाकरणात्तथा ॥ ३७॥ प्रभातिकं तदा प्रायः प्रदोषाद्गुरु शीतलम् । दिवाकरकराघातायायामानलसेवनात् ॥ ३८॥
प्राभातिकात्तु प्रादोषं लघु वातकफापहम् । वृष्यं बृंहणमग्निदीपनकरं पूर्वाह्नकाले पयो मध्यान्हे तु बलावहं कफहरं पित्तापहं दीपनम् । वाले वृद्धिकरं क्षये क्षयकरं वृद्धेषु रेतोवहं रात्रौ पथ्यमनेकदोषशमनं क्षीरं सदा सेव्यते ॥ ३९ ॥
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