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दुग्धदधितक्रघृतमूत्रवर्गः।
३०९ स्थिरताको करनेवाला होताहै अब स्त्रीदुग्धके गुण स्त्रीका दूध हलका शीतल दीपन वातपित्तको हरनेवाला ॥ २२॥ नेत्रशूल अभिघात इनकों हरता और नस्य आश्चोतनमें श्रेष्ठहै अब धारोष्णआदिका गुण धारोष्ण गायका दूध बलकेहित हलका शीतल अमृतके समान होताहै ॥ २३ ॥ और दीपन त्रिदोष हरता है और वोह धाराशिशिर सेवन करै धारोष्ण गायका हित होताहै और धाराशीत भैसका अच्छा होताहै ॥ २४ ॥ औटाया हुवा गरम भेडीका और औटायाहुवा शीतल बकरीका दूध हित होताहै कच्चा दूध अभिष्यन्दि भारी कफ आमको बढानेवाला होताहै ॥२५॥ गाय और भैंसका दूध छोडके सब अहितहै स्त्रिका दूध कच्चाही हितहै औटायाहुवा हितहै ॥ २६ ॥ औटा गरम कफवातकों हरता और औटा शीतल पित्त हरताहै आधा पानी मिलाके बाकी बचाहुवा दूध कच्चेसें बहुत हलका होताहै ॥ २७ ॥ जलसें रहित दूध जैसे जैसे बहुत औटायाहुवा वैसे वैसे भारी चिकना शुक्रकों करनेवाला बलकों बढानेवाला होताहै ॥२८॥
अथ पीयूषकिलाटक्षीरशाकः तक्रपिण्डमोरटानां लक्षणानि गुणाश्च. क्षीरं तत्कालसूताया धनपीयूषमुच्यते । नष्टदुग्धस्य पक्कस्य पिण्डः प्रोक्तः किलाटकः ॥२९॥ अपक्कमेव यन्नष्टं क्षीरशाकं हि तत्पयः। दना तक्रेण वा नष्टं दुग्धं बद्धं सुवाससा ॥ ३०॥ द्रवभावेन सहितं तक्रपिण्डः स उच्यते । नष्टदुग्धं भवन्नीरं मोरटं जेजटोऽब्रवीत् ॥३१॥ पीयूषं च किलाटश्च क्षीरशाकं तथैवच । तक्रपिण्ड इमे वृष्या बृंहणा बलवर्धनाः॥ ३२॥ गुरवः श्लेष्मला हृद्या वातपित्तविनाशनाः। दीप्ताग्नीनां विनिद्राणां विद्रधौ चाभिपूजिताः ॥ ३३ ॥ मुखशोषतृषादाहरक्तपित्तज्वरप्रणुत् । लघुर्बलकरो रुच्यो मोरटः स्यात्सितायुतः ॥ ३४ ॥
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