________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वारिवर्गः ।
२९९
मेके समान उदक लताओंके फैलावसें ढकाहुवा चौंज्य ऐसा कहा है ॥ ४९ ॥ और आचार्य पत्थर आदिसें बन्धेहुवेकों चौज्य ऐसा कहाहै उस्मेके जलकों चौंज्य ऐसा मुनियोंने कहाहै ॥ ५० ॥ चौंज्य जल अग्निकों करनेवाला रूखा कफहरता मधुर पित्तहरता रुचिकों करनेवाला पाचन विशद कहाहै ॥ ५१ ॥ अनन्तर पल्वलका लक्षण और गुण श्रावणमासमें छोटी गढई जो होती है उसकों पल्वल कहते हैं कर्क - राशिस्थ सूर्यमें अर्थात श्रावणमासमें चन्द्र अर्थात मृगशिर उसमें हुवा यह मुख्य पाठहै नहीं रहता जल कुछ उस्का पाल्वल है | ५२ || गढईका जल अभिष्यन्दि भारी मधुर त्रिदोष करनेवाला है.
अथ कैदारकस्य वृष्टिजलस्य च लक्षणं.
नद्यादिनिकटे भूमिर्या भवेद्वालुकामयी ॥ ५३ ॥ उद्भाव्यते ततो यत्तु तज्जलं चिकिरं विदुः । चिकिरं शीतलं स्वच्छं निर्दोषं लघु च स्मृतम् ॥ ५४ ॥ तुवरं स्वादु पित्तघ्नं क्षारं तत्पित्तलं मना । केदारं क्षेत्रमुद्दिष्टं कैदारं तज्जलं स्मृतम् ॥ ५५ ॥ कैदारं वार्यभिष्यन्दि मधुरं गुरु दोषकृत् ।
टीका - नदी आदिके निकट जो रेतीकी जमीन होती है ॥ ५३ ॥ उस्सें जो जल निकलता है उस जलकों चिकिर कहते हैं चिकिर शीतल स्वच्छ निर्दोष हलका कहाहै ॥ ५४ ॥ कसेला मधुर पित्तहरता भारी और वोह थोडा पित्तकों करनेवाला है केदार खेतकों कहते हैं और उसमेंके जलकों कैदार कहाहै ॥ ५५ ॥ कैदार जल अभिष्यन्दी मधुर भारी दोषकों करनेवाला है.
अथ वार्षिक हैमंतलक्षणगुणाः.
वार्षिकं तदहर्वृष्टं भूमिस्थमहितं जलम् ॥ ५६ ॥ त्रिरात्रमुषितं तत्तु प्रसन्नममृतोपमम् ।
हेमन्ते सारसं तोयं ताडागं वा हितं स्मृतम् ॥ ५७ ॥ हेमन्ते विहितं तोयं शिशिरेऽपि प्रशस्यते । वसन्तग्रीष्मयोः कौपं वाप्यं वा नैर्झरं जलम् ॥ ५८ ॥
For Private and Personal Use Only